संक्षिप्त जैन इतिहास भाग iii खण्ड ii | Sankshipta Jain Itihas Bhag-iii Khand-ii

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Sankshipta Jain Itihas Bhag-iii Khand-ii by बाबूलाल स्वामी - Babulal Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पद और दम्ब राजवंश । [९ मे च ५ ~ भ के जा के व व अर. के न न सा मिस भरकर पटर सपनी मतिभा और प्रतिष्ठासे हाथ घोकर येनकेन प्रझरेण सपना भद्ध बनाये रहे ।* ऐतिहासिक कारे स प्रथम उनका वर्णन समुद्रगुप्तके वर तमें मिक्ता है, जिसने पहदराना विष्णुगोर्कों सन्‌ ३५० ईं०पें पराजित किया था । अपने उत्कर्षके समयमें पल्नवोंकि राज्यकी उत्तरी सीमा नर्मदा थी भीर दक्षिणी पन्नार नदी । द्षिणमें समुद्रसे समुद्र- लेक उनका राज्य था । टममें पहले-पढले सिंहविष्णु नामक राजा प्रमिद्ध हुआ था। उसका यह दावा था कि उसने द्तिणकें तीनों राज्योंकि मतिरिक्त नद्धो मी विनय किया या उसका उचराधिकारी उसका पुत्र महेन्द्रवस्मैनू प्रथम हुमा । उसकी साति पहारोसि काटी हुई शुफारओं के महेस््रवमंनू। उन भणणित मेदो है ओ चनप, चिङ्गरेषुर, उरी भरट सौर दक्षिण मकरे मिलते है। उसने महेन्द्रवाद़ी नामका एक बढ़ा नगर बसाया सौर चसे समीप एक वडा ताराब लपने नामपर्‌ ुदवावै। । इतत रानाको विया नौर कलि सति मेम था। इसने ‹मत्तविकात महन्‌! जामक एक ग्रंथ रचा था, जिसमें भिन्न मर्तोका ठपदाप्त क्रिया धा) कहते है कि पहल वंशका सबसे नामी राजा नरसिंहवर्ग्मन्‌ था | उसने पुलके शिनकों परास्त करके सन दूं # २ छुनर्साँग 1 ई० ने वातापि (बादामी) पर मधिकार प्र्त न 5 , किया, जिससे चाछुक्योंको भारी क्षति उठानी नङ्‌ ०; १४ ५३, र-लामाई ०, ए० २९६. 3-नेखाई१, ४० ३६.




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