खूब कवितावली | Khub Kavitavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
302
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ खूब फवितावली
पाण' इन्द्र थौर '्यचूँ इन्द्र माय, लेकर सय परिषारजी ॥ १॥
सट 'पीरासी थरमी बदोतर, मौठर साठ घगान ।
पचास चाक्ली तीस धस दशः, सामानिक सुर जान ॥
चार गुणा सामानिफ पुर से, धाठमर्त परमागजी ॥२॥
धारा सहस्र चवदा घलि सोला, तीन परिपदा माँय !
दो दो सदस्र फम फरके उपर, दो दो सदस्न धढ़ाय 1
दे इन्द्र तक इणबिघ लीजो, चतुर दविसाध लगायजी ॥ ३॥
सदस्र पॉनसे ढाई से जी, फेर सबा सो थाय।
दशसा २ दीन फे तुम, क्षीजो जोड लगाय॥
इतने सुर पक एफ इन्द्र फे, दीन परिषदा सॉँयजी 1॥ ४ ॥!
लक्त जोजन छा लम्बरा चौड़ा, 'मायारच विमान ।
पक सस्र जोजन फो सष के, मदिन्द्र प्रजा परिमान॥
सुघोपा महाघोषा घण्टा, पांच पांच फे जानी ॥५॥
पमरिन्द्र॒ घलशन्द्र प्रमुख, भवनपति छे दीस ॥
काल और मद्दादाल थादि दे, व्यंतर के बत्तीस ।
धन्द्र सूये इन्द्र मिक्त दो गए चार बीस चालिसजी ॥ ६ ॥
अप लघ जोजन रम्वा चौड़ा, 'अपुरं का विमान !
धरणिन्द्रादिक श्रष्टादश के, सष्टख पच्चीस प्रमाण ।
उ्यतरिन्द्र श्मौर रवि शशि फे, सष्टख जोजन फा मानजो ॥ ७ ॥
वैमानिक से झाघी ऊंची, जानो श्चसुर छ्मार 1
नवनिकाय के दाई से की, मदिन्द्र प्वजा विस्तार ॥
सौ जोजन उपर पच्चीस जोजन की, व्यंठर जोतिपी धार जी ॥>॥
ए घिध हुआ समागम सुर फो, जिन महिमा के काल |
मेरे गुरु गण धागर मानु, नन्दलाल महाराज ॥
गाषलपिन्डी जोड़ धना, जरिया * वंदि छाजजी 1
- ~
१ प्राएत। ९ अच्युत ३ सिद्ध हुआ 1
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