खूब कवितावली | Khub Kavitavali

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Khub Kavitavali by रतनलाल जैन - Ratanlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ खूब फवितावली पाण' इन्द्र थौर '्यचूँ इन्द्र माय, लेकर सय परिषारजी ॥ १॥ सट 'पीरासी थरमी बदोतर, मौठर साठ घगान । पचास चाक्ली तीस धस दशः, सामानिक सुर जान ॥ चार गुणा सामानिफ पुर से, धाठमर्त परमागजी ॥२॥ धारा सहस्र चवदा घलि सोला, तीन परिपदा माँय ! दो दो सदस्र फम फरके उपर, दो दो सदस्न धढ़ाय 1 दे इन्द्र तक इणबिघ लीजो, चतुर दविसाध लगायजी ॥ ३॥ सदस्र पॉनसे ढाई से जी, फेर सबा सो थाय। दशसा २ दीन फे तुम, क्षीजो जोड लगाय॥ इतने सुर पक एफ इन्द्र फे, दीन परिषदा सॉँयजी 1॥ ४ ॥! लक्त जोजन छा लम्बरा चौड़ा, 'मायारच विमान । पक सस्र जोजन फो सष के, मदिन्द्र प्रजा परिमान॥ सुघोपा महाघोषा घण्टा, पांच पांच फे जानी ॥५॥ पमरिन्द्र॒ घलशन्द्र प्रमुख, भवनपति छे दीस ॥ काल और मद्दादाल थादि दे, व्यंतर के बत्तीस । धन्द्र सूये इन्द्र मिक्त दो गए चार बीस चालिसजी ॥ ६ ॥ अप लघ जोजन रम्वा चौड़ा, 'अपुरं का विमान ! धरणिन्द्रादिक श्रष्टादश के, सष्टख पच्चीस प्रमाण । उ्यतरिन्द्र श्मौर रवि शशि फे, सष्टख जोजन फा मानजो ॥ ७ ॥ वैमानिक से झाघी ऊंची, जानो श्चसुर छ्मार 1 नवनिकाय के दाई से की, मदिन्द्र प्वजा विस्तार ॥ सौ जोजन उपर पच्चीस जोजन की, व्यंठर जोतिपी धार जी ॥>॥ ए घिध हुआ समागम सुर फो, जिन महिमा के काल | मेरे गुरु गण धागर मानु, नन्दलाल महाराज ॥ गाषलपिन्डी जोड़ धना, जरिया * वंदि छाजजी 1 - ~ १ प्राएत। ९ अच्युत ३ सिद्ध हुआ 1




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