सेनापति परिचय | Senapati Parichay

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Senapati Parichay  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेनापति-रत्नावली प्रथम सोपान ऋतु बन चरन घरन फूले सब उपवन घन, साई चतुरंग सग दल लदियत ह 1 यदी जिमि बोलत विरद धीर कोकिल है; शुजत मधुप गान युन गहियत है ॥ वे आस-पास पुहुपन की खवास सेदः सेये के खुगंध मोँभः सने रददियत रै । सोभा कौ खमाज, सेनापति सुख-साज छाज, श्ावत वस्त रितुराज कहियत है ॥ (२) मलय समोर सभ सौरभ धरन धीर, सरवर नीर जन मञ्जनं के काज के । मधुकर पुंज पुनि मं्धल करत गुंज, सुधरत कज सम सदन समाज कै ॥ ब्याकुल बियागी, जोग के सके न जोगी तहाँ, व्िद्रत मोगी सेनापति खल साज के। चरन वरन--रग विरगे । वदी-- भाट । पुहुपन--पूल । समीर--पवन । सरवर--तालाव ।




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