महादेवी की काव्य साधना | Mahadevi Ki Kavya Sadhna

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mahadevi Ki Kavya Sadhna by शिवमंगलसिंह - Shivmangal Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिवमंगलसिंह - Shivmangal Singh

Add Infomation AboutShivmangal Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
> ५ यना कौ प्रनुरला, भवो खो तोनता रौर धयभिव्यजनः च्य धनन तीनों वाने फिरेप रुप से दियाई पढ़ी । इसी कारण खर्टी बोली के : « रसे स्वर्ग से ऊते हुए लेंगों में यड्दी उकण्ठा से उसरीा स्वागत किया इसी प्रकार हिन्दी सहिय * में. छायवादी दटे जाने वा साहित्य व्य धीरे घीरे समावेश हु । इस घर की म्रलुप विशेषता यद ४ छि प्रगीत सुक्‍्तजों वी शोर लोग को उपिर यमन होगई, यहाँ तक देनारे धमिन ठते विश्रयस्व मल क्षिद्या यतकर « रद भए । [1 छवि ध्रसाद का. 'झाविरभावि ८... इसी सनय वाशों में भारनेन्दु लो की हो भांति एने दृमरी घ्नं ( ए6ा०९) पनि सा दिस हो रहा था । इस ग्रतिमा अन्यक शदथ धा जशंणर यनद 1 “कवि प्रयाद” नारतेस्ट्के समन्दपवाद 'मौर भर्त मान के दौच दो अिडें। नहीं उनमें घाचीनता श्र रुटिपालन झा कोई आयद दो सचछित दोता दे भर न परंपरा के सम चिस्दों को विद्रोंद , ज्र व्ति में वहा देंवे का, उनका काव्य एक सात, म्नियय पाए दै। रुडि कै यन्तो रं सविन हई टे मर रमणीय मैदान में बड़ सपनी दो सथाम्तना मैं लीन चनो श्राई ह, उस एक निश्चित प्र दै, जिसने शरीर कोन नड है, एड मनन्न गेमीरता सर्वत व्यास हैं (मासेन के समन्वस्वाद घोर “प्रसाद” के सन्दययाद भँ उदी चन्त है कि भासतेर्डु में संदिंप्रियता भी थी, नवीचता नी । इसीलिए इनडे काव्य मेंरीठि के प्रेम द्धै स्ममूुम चथा प्रचारक या उमर करठसर दोनों ब्य श्वत्पदेखने श्ये मिस जना हैं। “प्रसाद” के व््ग्व में रुटिपातन और विद्वोद दोनों से एक विचित्र उदासीनता मिलनी है उनकी उतियों में एक शब्द भी ऐसा न मिलेगा, जिससे यदद प्रतीत हो कि वे आ्राचोनता ॐ ययनं को तेडने के लिये व्याउल हैं, चाय दी नवीनता के बर्तसात स्वस्प में सी कोई यश ऐसा से मिलेगा जिनड़ी येर्‌ व ने सांप्रर्यन न किया दो 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now