दुनिया की सैर | Duniya Ki Sair
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सागर प्रवास
६
के साथ अन्याय हुभा ह, यदी सय फा कहना दे । मंत्रियों मैं
नरीमान का न दोना, सटरूना तो जरूर है। बम्ब के टिष
राष्ट्रीय क्षेत में जितना नरीमान का नाम है, उतना और का
नहीं । परन्तु सरदार पटेल और जमनाछाल बजाज के मन की
गति-विधि षो पहचानना साधारण मानस-लास्री फा काम नी
है । ये गांधी-युग के रहस्य हैं
हो, यददाँ आकर फिर यही पासपोर्ट का प्रश्न उपस्थिचर हुआ 1
घर से हो चल दी पड़ा था, पर पासपोर्ट अभी तक हाथ नहीं
आया, इसका पछतारा दृता जा रहा था । अब्र राण्य के पोटिः
टिक मेषर को तार दिया--“मैं ३१ जुलाई को जाना चाहता
हूँं। पासपोर्ट भेजिए । समय पर अगर आप भेज मे सकें तो
वम्वई-पुछिसि-कमिश्रर को सूचित करिये कि मुझे पासपोर्ट देने
में आपको कोई आपत्ति नहीं है ।”
मुझे मेबर साहब का अलुप्रद मानना चाहिए कि उन्होंने
तुरंत उत्तर दिया, ओर पुटिस कमिश्रर-वम्बई फो भी । मेँ गव-
मेंण्ट-सेक्रेररियट मे गया । फां छेकर पुटि कमिसर के
आफिस में पहुँचा । एक अंग्रेज मददाशाय वैठे हए थे । मालूम
हुआ कि वे डिपुटो-सुपरिंटेंडेंट पुलिस थे । मैंने जाते ही अपना
तार दिखाया, तुरत॒उन्दोंने टेबढठ पर रखा हुआ एक “तार”
दिखलाया कि “हमारे पास भी आ गया है ।” तय तो जान-से-
जान आई । उन्होंने अपने सामने मेरे हस्ताक्षर स्यि, ओर तुरंत
कमिश्नर साहब के दफ्तर मे जा दस्तपत ठे आये ! इस काम में
सुदिकिठ से ५-७ मिनट छगे होंगे ।
अब हमने फिर 'कार' ठी, और सेक्रेटरियट से पहुँचे ।
दफ्तर बन्द हो गया था, अत. घर आए । दूसरे रोज सुबह फिर
११॥ चजे पहुँचे । ५ मिनट में उन्होंने फार्म ठेकर कड आने
को कहा । आज हमारा काम ठगभग हो गया था । अभी तर्क
जो चिता थी, वह् नरीं-सी रह् गई थी !
अप दूसरा काम था, थामस छः से । आगे बहे । ३१
जुलाई को जानेवाठे जद्दाल की सीट का तय करना था । कम्पनी
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