छड़ी बनाम सोटा | Chari Banam Sonta

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Chari Banam Sonta by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छड़ी बनाम सोटा सोचा इन्हें खाऊँगा नहाके, या अभी में खाऊ, मुख चीच पानी के प्रवाह उमड़ा ये !! इतने में जाँचने सुकदमा पड़ोस ही में, मेरे भित्र सोह थानेदार घा गये! मेरे झंश में न पड़ा लड्डुछों का खाना क्योंकि: दानेदार लड्डू सभी धानेदार खा गये ! एक समस्या थी 'वोड़ा है । येडित बुलाकी सम ने उसकी पूर्दियाँ इसप्रकार की थीं-- भाई, जो गदाई है खुदाई है कभी न वह, होते हुए दाँत के भी वह्‌ दूतखोड़ा है ! नाक होते हुए भी परम सफटा है बह, पब रते भो वह लैंगड़ा निगोड़ा है ! रेस रेशे में हैं बदमाशी उस 'छादमी के, जैसे तरकारियों में रेशेदार थोडा है! सथा वधा सधु वने फो वह्‌ वना शरे, सुकवि दुण्ण्ी वड्‌ गधा हैन घोड़ा है। इसी प्रकार एक सम्सेज़न में एक समस्या घी--'होवी' । इसकी पृत्ति परिडत चुलाकी राम ने इसप्रफार की थी-- में सजा दुनियाँ में करवा कोन काम, साथ में सेरे नईीं जो दुम होती ! ९५ वि ५ ही नि ८1 १ म्म ^




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