अमृतवाणी | Amratvani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अमसृववास्थी शक [ प्ष--\ | उपवास का चमत्कार चि तेरा पत्र मिला |. मैं अपने उपचारों से दी भिपय एवा ह । डङ्टिर का बदागा बुझा उपचार चादो बाद मी करी । किम्ठु कम से कस छात दिन का उपगात कर डाला! इमें झनशन से डर शेना दी नशे पारि । शात दिन के धनशन मैं बढ़त से काम दू करती र कमी । जीवन में पहली बार ही जब मेंनि बहुत दिनों का उपबाठ छिया सो एक दिम का मी विशाम मे लिया | झऔौर दानि मी नहीं हुई | बद उपवास ७ दिन का था | उस समय शरीर मैं थोड़ी -बहुए पर्षी भी थी । 'जितके शरीर में 'र्षी का संप्रा न दोगा उसे दी उपबात्त में पढ़ा रहना पढवा है । दो दिने पर्षद्‌ लो वके श्रमिक शक्ति प्रठीत दोमे लगेगी । बह ठच है कि पढ़िशे दो दिन सूठी मूक खगी-ती मालूम दोगी किन्य पौछे भूख ही मदी शगपी ¡ रन्धं व बलू राहो नादा टै तमौ मूल लमती कै। इस बीज एनिमा शेकर पेड ठाफ रखना चाहिए! एनिसा (पिचकारी) लेने के बाद भर्षटगमसासन करने से पानी ऊपर बी भतड़ियों को भी मिचता है । ढिस्तु पके उत्तकी थानकारी न शो ठो दो दे | उपडार-काल थ पानी में समसक भौर तीडा डाल कर शूष पीना 'चादिए । हरश्रार आठ व पॉच पेन नमक और दुठ-मेन लोड, एह प्रर ध्राठ गिला झाठानी घे गेला स्ते र| बूप मैं बैठना 'चादिए. | किसी प्रहार का संकोच न करके यू इतना अर, ऐसी मेरी इच्छा है । थादे हो डा को शूबित कर दे | थे मी दद उपचार पतन्द करेंगे | न बढुद से डाक्ट्यो थो सपबात का अमत्कार सास्व हेमे लग है ! वा १५--११-ए बापू के झाशीवांद




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