अयोध्या काण्ड का काव्य सौन्दर्य | Ayodhya Kaand Ka Kavya Saundarya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
450
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रू
भ्रयोध्यावासियों सहित श्रागे चते। निपादराज भी परथन्त के लिए
साथ हो लिया ।
भरत मरहाज के शाश्रम को--
भरत पयादेहि पाँव चल रहे हैं । सुसेवक धारम्वार कोतल पर वैठने को
कहते है । भरत उमको उत्तर देते हैं--
राम पयादेहि पायें सिषा । हेम एह रय मज वानि वनाए ॥
सिर यल जाउ धरम यहु मोरा । सव तं सेवक धरमु कटोरा ॥
भरत तीसरे प्रहर में प्रयाग में प्रवेश करते है । उसके पैरो में भलका
मलिकने लगते है । वे विवी मे स्नान करते ट| त्रिवेणी की इयामल-ववल
हिलोरें देखकर भरत का हृदय राम के प्रति श्रपार प्रेम से भर जाता है । वें
शिवेशी से वरदान माँगते हुए कहते है--
श्ररय न घरम न काम रुचि, गति ने घहुउँ निरवात ।
जनम जनम रति राम पद, यह बरदानु न श्रान ॥
राम उनके कारण वनवासी हुए, यह सोचकर भरत का हुदय श्रात्म ग्लानि
से भर जाता है। थरिवेशी ते निकली हुई वाणी उनका समाधान करती है--
तात भरत तुम्ह सब विधि साधु । राम चरन ध्नुराग श्रगाधू ॥
चादि गलाभि करहु मन माहँ । तुम्द षम र्मा कोउ प्रिय साहो ॥
श्रिवेणी के श्रनुदुल वचन सुनकर भरत पुलक्ति हो जाते हैं । देवता भरत
कौ श्वन्य-वन्य' कूकर पुष्यो की वर्प करते ह ।
भरद्वाज के घ्रालम मे भरत--
भरत भरद्वाज मुनि के श्राथम में पहुँचते है। मुनि भरत को उठाकर हृदे
से लगा लेते है । भरत की श्रात्मनलानि दूर करने के लिए मुनि भाति-मति
से उनका प्रबोव करते हें श्रौर कहने है कि तुम्द्वारा दर्शन तो राम, सीता,
लक्ष्मण के दर्गन का फल है--
सच साधन कर सुफल सुहावा । लखन राम सिय दरसनु पावा ॥
तेहि फल कर फल दरस दुम्हारा 1 सहित प्रयाग सुभाग हमारा ४
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