अयोध्या काण्ड का काव्य सौन्दर्य | Ayodhya Kaand Ka Kavya Saundarya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ayodhya Kaand Ka Kavya Saundarya by राकेश - Rakesh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राकेश - Rakesh

Add Infomation AboutRakesh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रू भ्रयोध्यावासियों सहित श्रागे चते। निपादराज भी परथन्त के लिए साथ हो लिया । भरत मरहाज के शाश्रम को-- भरत पयादेहि पाँव चल रहे हैं । सुसेवक धारम्वार कोतल पर वैठने को कहते है । भरत उमको उत्तर देते हैं-- राम पयादेहि पायें सिषा । हेम एह रय मज वानि वनाए ॥ सिर यल जाउ धरम यहु मोरा । सव तं सेवक धरमु कटोरा ॥ भरत तीसरे प्रहर में प्रयाग में प्रवेश करते है । उसके पैरो में भलका मलिकने लगते है । वे विवी मे स्नान करते ट| त्रिवेणी की इयामल-ववल हिलोरें देखकर भरत का हृदय राम के प्रति श्रपार प्रेम से भर जाता है । वें शिवेशी से वरदान माँगते हुए कहते है-- श्ररय न घरम न काम रुचि, गति ने घहुउँ निरवात । जनम जनम रति राम पद, यह बरदानु न श्रान ॥ राम उनके कारण वनवासी हुए, यह सोचकर भरत का हुदय श्रात्म ग्लानि से भर जाता है। थरिवेशी ते निकली हुई वाणी उनका समाधान करती है-- तात भरत तुम्ह सब विधि साधु । राम चरन ध्नुराग श्रगाधू ॥ चादि गलाभि करहु मन माहँ । तुम्द षम र्मा कोउ प्रिय साहो ॥ श्रिवेणी के श्रनुदुल वचन सुनकर भरत पुलक्ति हो जाते हैं । देवता भरत कौ श्वन्य-वन्य' कूकर पुष्यो की वर्प करते ह । भरद्वाज के घ्रालम मे भरत-- भरत भरद्वाज मुनि के श्राथम में पहुँचते है। मुनि भरत को उठाकर हृदे से लगा लेते है । भरत की श्रात्मनलानि दूर करने के लिए मुनि भाति-मति से उनका प्रबोव करते हें श्रौर कहने है कि तुम्द्वारा दर्शन तो राम, सीता, लक्ष्मण के दर्गन का फल है-- सच साधन कर सुफल सुहावा । लखन राम सिय दरसनु पावा ॥ तेहि फल कर फल दरस दुम्हारा 1 सहित प्रयाग सुभाग हमारा ४




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now