बृहत कल्पसूत्रम् भाग - 6 | Brihat Kalpa Sutra Bhag - 6
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
442
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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गुणश पण्यधाम पल्य शस्देबनं |
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पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय गुणमेडार पण्यनाम अने पुण्यधाम तथा श्रीआत्मानंद
जैन ग्रन्थरस्नमालान। उसपादक, संरोधक अने सम्पादक गुरुदेव श्री १००८ श्री चतुर-
विजयजी महाराज नि. सं. १९९६ ना कार्षिक वदि ५नी पाठली रात्रे पररोकवासी थया
छे, ए समाचार जाणी प्रत्येक गुणग्राही सादिद्यरसिक विद्भानने दुःख थया सिवाय नहि ज
रहे । ते छतां ए वात निर्विवाद छे के-जगतना ए अटरु नियमना अपवादरूप कोई पण
प्राणधारी नथी। आ स्थितिमां विज्ञानवान् सदपुरूषो पोत।ना अनित्य जीषनमां तेमनाथी बने
तरलां सत्कार्यो करवामां परायण रही पोतानी आसपास वसनार महानुभाव अनुयायी वमने
विशिष्ट माग चिधता जाय छे |
पूज्यपाद गुरुदेवना जीवन साये स्वगुरुचरणवास, शाक्लसंशचोधन अने ज्ञानोद्धार ए वस्तुओ
एकरूपे वणाद गई हती । पोताना कगभग पचास वर्षं जेरला चिर प्रनरज्यापर्यायमां अपव।द्-
सूप,-अने ते पण सकारण,- वर्षो बाद करीए तो आखी जिदगी तेओश्रीए् गुरुचरणसेवामां ज
गाढ्ी ठे । प्रथमुद्रणन। युग पदेरां तेमणे संख्याबेध शाल्ञोना रुखवा-रखाववामां अने संशो-
धनमां वर्षो गव्यां ठे । पाटण, वडोदरा, टींबडी आदिना विशा ज्ानभंडारोना उद्धार अने
तेने सुरक्षित तेम ज सुन्यवस्थित करवा पाछठ वर्षो सुषी श्रम उटान्यो ठे । श्री आत्मानंद
-जेन प्रन्थरत्नमाछानी तेमणे बराबर त्रीस वर्ष पर्यत अप्रमत्तभावे सेवा करी छे
था. जै. अं. र. मा.ना तो तेओश्री आत्मस्वरूप ज हता ।
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