बन्धस्वामित्व | Bandh Swamitw

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : बन्धस्वामित्व  - Bandh Swamitw

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about देवेंद्र सूरि - Devendra Suri

Add Infomation AboutDevendra Suri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
{ ११ घाथीन श्र नवीन तीसरा कमग्रन्थ--ये दोनों, 'विषय में समान हैं । नवीन को अपेक्षा प्राचीन में विषय-वणन कुछ विस्तार से किया है; यही भेद है! इसी से नवीन में जितना बिष्य २५ गाथाओं में वर्णित है उतना ही विषय प्राचीन में ५४ गाथाओं में । भ्रन्थकार ने अभ्यासियों की सरलता के लिए नवीन कमंप्रन्थ की रचना में यह ध्यान रक्खा है कि निष्प्रयोजन शब्द्‌-विस्तार न हो आओौर विषय पूरा आवे । इसी लिए गति आदि मार्गण मे गुरस्थानों की संख्या का निर्देश जैसा प्राचीन कर्मग्न्थ में बन्ध-स्वामित्व के कथन से अलग किया है नवीन . कर्मप्रन्थ में वैसा नहीं किया है; किन्तु यथा-संभव गुणस्थानों को लेकर बन्ध-स्वामित्व दिखाया है, जिस से उन की संख्या को अभ्यासी आप ही जान लेवे । नवीन कर्मप्रन्थ है. संक्षिप्त, पर वह इतना पूरा है कि इस के अभ्यासी थोड़े ही में विषय को जान कर प्राचीन बन्ध-स्वामित्व को बिना टीका-टिप्पणी की मदद के जान सकते हैं. इसीसे पठन-पाठन मेँ नवीन तीसरे का प्रचार है । गोम्मटसार के साथ तुलना -- तीसरे कमेप्रन्थ का विषय कमेकाणएड में है, पर उस की वर्णन-शैली कुछ भिन्न हे । इस के सिवाय तीसरे कर्मभन्थ में जो जो विषय नीं है ओर दूसरे के सम्बन्ध की दृष्टि से जिस जिस विषय का वणन करना पढ़ने वालों के लिए लाभदायक दे वह सब कमेकाण्ड में है । तीसरे कर्मपन्थ मे माम॑णाओं मे केवल बन्ध-सवामित्व र्वाएत है परन्तु क्मेकाएड मेँ बन्ध-लामित्व के अतिरिक्त मार्गणाओं को लेकर उदय-स्रामित्व, उदीरणा-स्वामित्व, और सत्ता-स्वामित्व भी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now