कश्मीर कुसुम | Kashmir Kusum

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Kashmir Kusum  by राज़ तरंगिणी - Raj Tarangini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ८ _| के झतु लीगों को ठाकुर को पदवी दो जाती थी । ७ त २९ सो ) तुरुष्क देश से सोने को सुलस्धा करने को दिव्या कष के ससय में झाई। (७ त० ५३ सो) इसी की काले खत लों तै पछृङे पहल बन्दुंक का युतं किया ( ७ त° <८४ स्मो °) कलिंजर क्षे सजा, राजः उदयसिंह आदि कड राजाओं के प्र- संग से (१३०० श्लो° कै जालपार) नाद खाए हं) युद हारने कै ससय चला- नियां राजपुताने की भांति यहो सी जल जाती थी । (७ त° १५०० श्लो° ) अछ्सतंरंग में भी कायस्थीं को बहुत निन्‍्दा की है। ( ८ त० ८८४. सी ० दि ) कीदियों को सांग से रंग कर कपड़ा पह्नाते थे। ( ८ त० «३ सो०) कल्याण कते हेतु लोग सौखस्ववराज, गजेन्द्रसमोच, दुगापाठ आदिका पाट करते थे (८ त° १०६ सो ) टरकसाल का नासर टठंकशाला । (८ त० १४२ सो ०) उस ससय सें थी राजाओं को इस बात का आग्रह कषोता था कि उन्हीं के नास के सिक्े का प्रचार विशेष हो ।' इस ससय (बारवीं शताष्दी के संध्य में) कालिंजर का राजा कलह था! (८ त० २०४ स्लो ) कटार को कटार कह धे। (त° ५११ श्रो) षं का किर काट कर लोगों ने साले पर चढ़ायां किन्तु दस के पसे किसी राज! कै सिर काटने की चाल नदी थी! 'इ्ष का व्याख्यान इस तरंग में अंवश्य पढ़ने वो योग्य है जिससे शष्ार वीर्‌ जादि रसों का कृदय में उंदय कषोकर अन्त सें बेराग्य आर्ता है । राजतर॑गियी त रासलच्छण की भूर्तं का षष्ठ ते भीतर सै निकलना इस बात का प्राणं हे कि सचि पूजा यहां बहत दिन से प्रचलित है। इस में देवी, देवता, भूत प्र त और नागों की अनेक प्रकार की थ्रासर्स कथा हैं जिन को ग्रन्य वटठ्ने कै भय से यद्धं नरी लिखा! चौर भी हत्त, शस्त पौषधि चौर सरि आदिकों के नेक प्रकार के वन हं! कोई सद्ात्मा इस का पूरा अज्ुवाद करेंगे तो साधांरण पाठकों को इसका पुर्ण आनन्द मिलेगा । इसमे एक सणिका वणन वड़ा श्रादय जनक है। एक बेर राजा नदी पार होना चाहता धा किन्तु कोई सासान उस समय नह्लीं था । एक सिद्ध मनुष्य ने जलसं एक सरि फकदीख्ससे जल कट गया और सेना पार उ- तर गई. । फिर दूसरी सखि के दल से इस सणि को उठा लिया । एक कहानी ऐसी और थी प्रसिद है कि किसी रांजा को अंगूठी पानी में गिर पड़ी । राजा को उस अमूल रह का बड़ा शोच हुं्रा यह देख कर संचीने अपनी अंगूठी डोरे में बांध कर पानी मैं डाली । संची के अंगूठी के रत्न में ऐसी शक्ति थी कि अन्य रल्लों को वक्ष खींच खेती थी इस से राजा को अंगूठी खिल गई।




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