सत्यार्थ प्रकाश | Styarth Prakasha Ac 765 (1867)

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Styarth Prakasha Ac 765 (1867) by सरस्वती स्वामी - Saraswati Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड सखत्यायेप्रकाश: प कक वति बी वा लादानिरं ततो विराडजायत विरजो अधि पूरुष । श्रोत्रांदायुधं णश्च इलादगिरजायत । तेनं देवा भर्न्त । पश्वादूपिमथों पुरः ॥ यज्ञः भ° ३१॥ | तस्माद्रा एतस्मादारमन ्ाक्षाशः सम्भूतः । अाकशदरायु; । बायोएमिः । श्रग्नेरापः । अद्धयः पृथिवी । पृथिव्या भ्रोपधयः । श्नोपािम्योऽन्नम्‌ । भनाद्रवः । रेतसः पुरुषः । स वा एष पुरुषाऽश्रसमयः ॥ [ ब्रह्मा ° बन्ली अ° १ | यह तैचिसेयोपनिपद्‌ का वचन है । पसे प्रमा मे विराद , पुदप, देव, अकाश, वायु, अभि, जल, भूमि आदि नाम लौकिक पदार्थौ के होते हैं । क्योकि जहां २ उत्पास, स्थिति, प्रलय, अरपश्ञ, जड़, दृश्य श्रा विरेषर्‌ भी लिखे हे। वहां २ परमेश्वर का प्रद नदी हाता । बह उत्पत्ति यादि व्यवहारा से प्रथक्‌ है श्रौरं उपरोक्त मन्त्रो म उत्पान्ते दि व्यवहार दें । इसी से यहां विराट्‌ श्रादि नामास्ति पर- मात्मा का ्रहणुन होक सस्तारी पदार्थो का प्रण होता ट । किन्तु जहां २ सवक्षादि विशषण हों वहां २ परमात्मा झौर जहां २ इच्छा, द्वेप, प्रयल, खुख, दुःख श्र शरपशादि विशषण द यहां ५ जीव का ग्रहण होता है । ऐसा सत्र समसाना चाहिय । क्योंकि परमेश्वर का जन्म मरण कभी नहीं होता इससे वि- राद आदि नाम थार जन्मादि विशेषणों से जगत्‌ के जड़ श्ौर जावादि पदार्थों का ग्रहणं करना उचिन दे परमेश्वर का नहीं । अष जिस प्रकार विरार्‌ द्मादि नामो सल परमश्वर का ग्रहर होता टै वह प्रकार नीचे लिखे पमे जानो । श्रथ श्नोङ्कारार्थः । ( चि ) उषसशपृ्क ( राज़ दीप्तौ ) इत धातु से कप्‌ प्रत्यय करन से 'विराद' शब्द सिद्ध दाता दे । “ या चिविधं नाम चराऽचरं जगद्राजयानि प्रकाशयति स विराट घ. विघ श्रर्थास्‌ जा बहु प्रकार के जगत को प्रकाशित करें इससे चिराद्‌ नाम द परमेश्वरः का ग्रहण दोना हे । ( श्रज्चु गतिपूजनसोः ) ( श्रम, च्रगि, एण गत्यर्थक ) 'घातु हैं इनसे ” अग्नि” शब्द सिद्ध दोता है । “गतख्यो ऽथा: क्षने गममं प्ापि्चति, पूजनं नाम सकारः” योऽति श्चच्यतेऽगत्यङ्गन्यति वा साधय मग्निः' ओ क्रानस्वरुप, सयम, जानने, प्राम होने श्चौर पूजा करने योग्य हे इससे उस परमेश्वर का नाम ““खग्नि ' दै । ( चिश प्रवेशने ) इस धानु स चिश्व'' शब्द्‌ सिद्ध होता दै । विशन्ति प्रवि्ठनि सवौ - रयाकाशादीनि भरलानि यस्मिन यो वा.५ऽकाशादिपु सर्वेषु भरतेषु प्रविष्टः सः विश्व दश्वरः जिसमे श्रा काशादि सय मून प्रवेश कर रद ह भ्रथवा जा इनमे व्य हके पविष्ट लो रह! हे इसलिये उस परमेश्वर का नाम विश्व है । इत्यादि नामों का ग्रहण अकारमात्र से होता है । “ज्योति हिरण्य तेजो वे दिरण्यमि- त्यैंतरेये शलपंथ च आहाणे ' “यो दिररायानां सूर्यादीनां तेजससां गर्भ उत्पातिनिमित्तमधिकरणु स॒दिरएय- गभः'' जिसमें सूयादि नेजवाल लोक उत्पन्न दोके जिसके श्राधार रहने हं श्रथवा ज सयदि तेजःस्वरूप पदार्थों का गर्भ नाम उत्पासी शरीर निवासस्थान है इससे उस परमइवर का नाम 'हिररयगर्भ” हैं। इसमे यजुर्वद के मन्त्र का प्रमाणु है:-- . हिररयगमः समंवततागं भूतस्थ जातः पतिरकं आसीद्‌ । स द्‌।धार एरथिवीं थायुतेमां शसम वाप दाचषा वधम्‌ ॥ [ यजू० अन १३ म०४] इत्यादि स्थलों में ` दिररयगम्‌ स परमेश्वर हका प्रहणहोता है । ( वा गतिगन्धनयोः) ५७, 9 ड ५ इस भातु स वायु शष्द लिद्ध त हे । ( गन्धनं ददिसनम्‌ ) “यो वाति चराऽचरञजगद्धरति बलिनां र ष म [५ इ बलिष्ठः स वायुः जो चराऽचर जगत्‌ का धारण, जौवन श्रौरः प्रलय करता ओर सय बलवानो स बलान्‌ = इसस उस इश्वर वा नाम चायु ' है । ( तिज निशान ) इस धातु स तेजः श्र इससे




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