विशाल भारत भाग - 5 | Vishal Bharat Bhag - 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 MB
कुल पष्ठ :
884
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जनवरी, १६३०; माध, १९८६ ]
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बुद्द जीवित रहे, तब तक वे कोई प्रापि नर्ही उडा सक्र,
परन्तु उनके मरनेके बाद ही, उनके एक शिष्यने कहा--
“श्र तो बुढ़ऊ मर गये, भव हम लोग जो चाहें कर
सकते हैं ।”'
परन्तु यह उसकी श्रान्ति थी, क्योंकि भगवान बुखके
प्रिय शिष्य परानन्द इत्यादि मौजूद थे, जिन्होंने बुद्धके संघर्म
किसी प्रकारकी गढ़बढ़ी नहीं होने दी । इसके विरुद्ध उन्होंने
संघको भौर भी दृढ़ करनेके लिए वैशालीमें एक सभा
बुलाई, जिसमें बुद्धके समस्त शिष्य एकबित हुए भौर
उनके समस्त वाक्य सुप्रसिद्ध शत्रिपिटकः मे एकचित किये
गये ।
भसलमें बौद्ध-प्रचारकोंने विशाल भारतकी. स्थापना
सम्राट भशोकके समयमें-- जो भ्पने शिलालेखोमें 'देवानां
पिय पियदसि' के नामसे प्रसिद्ध दै--की थी। झशोकने
बिशाल भारतकी स्थापना बड़ा महत्त्वपूर्ण भाग लिया था ।
परन्तु उसका उदेश्य साघ्राज्यवादी सानघ्नाज्य स्थापित करनेका
नहीं था, बल्कि सांस्कृतिक सान्नाज्य स्थापित करनेका था ।
अशोक ही के समयते बौद्ध साधु मारते बाहर गये, शौर
भारतकी सीमा मोंकि बाहर कई देशोंमें बौद्धघर्मका प्रचार हुआा।
अशोकने पाटलीपुलम बोद्धोंकी तीसरी सभा बुलाई थी,
जिसमें मुग्गालीपुत तिस्सके सभापतित्व्म एक हज़ार विद्वान
एकत्रित हुए थे। उसमें संघके नियमों भौर सिद्धान्तोर्म
संशोधन किया गया था। इस स्मरणीय सभाके बाद
बौद्ध-प्रचारक भिन्न-भिन्न दिशामोको मेज गये एक दल
डिमालय प्रदेशकी घोर गया, दूसरा पश्चिमी भारतकी भोर,
तीसरा सुवर्ग-भूमिकी भोर भौर चौथा लकाकी भोर । लंकाके
दोनों इतिहारसो--'दीपवंश” भर 'मदावंश'में इन प्रचारकोंका
बर्सीन है, झोर उन देशोंकि नाम भी दिये गये हैं, जिनमें ये
*सद्धसम' के प्रचारक भेज गये थे । उनमें लिखा है :--
*'मज्कतिक काश्मीर भौर गांधार को गये
महादेव महिषा (गोदावरीके दक्षिण) को गये
रक्खित बनवासी ( जेंगल ) को गये
प्राचीन विशाल भारतके निर्माता भगवान गौतम इद ४
बैक्ट्रयिके धमरक्खित धपरम्तक (पश्चिमी पंजाब » को गम
महाभम्म रकित मरहटा ( कम्ब-प्राम्त }) को गये
महारक्खित योनलोक (बेक्ट्या) को गये
मज्मिम हिमवन्त ( भध्य-हिमालय ) को भवे
सोन धर उत्तर सुवर्यनभूमि (श्रह्मा और मलाया भंतरीप )को गये
महिन्द तथा भन्य लोग लंकाको गमे \*
भशोकके शिलालेखोंमें भी उस समयके इस धर्म-प्रचारका
बयान मिला दै। धपने एक शिलालेखर्म भशोक कहते
हैं--'पप्ौर यह कहा जाता है कि दान एक प्रशंसनीय वस्तु
है, परन्तु धम्मके दानके समान कोई भी दान या कृपा नहीं
दो सकती ।” इस प्रकार भशोक समस्त संसारके लोगोंको
धर्मका दान देना चाहते थे । उन्होंने साप्नाज्यकी समस्त
रक्षित रियासतोंमें, सीमान्त प्रदेशकी जातियोंमें, देशके
भीतरके समस्त जंगली भागों में, इक्षिण-भारतके स्वतंत्र
राज्योंमें, लकामें भौर सीरिया, मिश्र, सिरीन, मेसिडोनिया
श्रीर् शपीरसकी रियासतेमि-जो क्रमसे एंटिभोक्रस
थियो, टोलमी, फिलाडेलफस, मेगस, एेटिगोनक्ष, गोनाटस
धौर एलेक्जन्डर द्वारा शासित की जाती थीं--बोद्धघर्मके
प्रचारक भेज ये ।
इस प्रकार भशोकने विशाल भरतक् नीज वपन किया,
जो बहुत शीघ्र तीन महादेशों--एशिया, यूरोप भौर
भफ्का--र्में स्थापित हो गया । वे सबसे बढ़े बौद्ध सप्नाद
थे, जिन्होंने भपने धर्म-प्रचारके उत्साहसे भगवान बुद्धका
सन्देश भिन्न-भिन्न स्थानोंको पहुँचाया था । यहाँ तक कि
लकाके शासक 'तिस्स' की--जिसने भशोककी नक़ल करके
देवाना पिय की उपाधि धारण की थी--प्रारथनापर उन्होंने
भरपने पुत्र महिन्दको लंक मेज विया था। महिन्द बड़ा
उत्छाही प्रचारक था ; वह बहुतसे मिकुध्ों; बोद्धघर्मकी
पुस्तकों रौर उनके भष्यकि साय लंका गया था। राजा
“तिष्सः ने बढ़े झादरसे . उसका स्वागत किया. भौर उसके
कहनेसे झनुराधापुरमें 'यूपाराम दागव' का निर्माण किया ।
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