युद्ध और अहिंसा | Yuddh Aur Ahinsa

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Yuddh Aur Ahinsa by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म : २९ हेर हिटलर से अपील “गत २४ अगस्त को लन्दन से एक वहिन ने सुमे यह तार दिया-कपा करके कुछ कोजिए । दुनिया श्रापकी रहनुमाई की राह देख रद्दी है” लन्दन से एक दूसरी वहिंन का यह तार राज मुमे मिला--में आपसे झनुरोध करती हूँ कि आपकी पूशुवल में न होकर विवेक से जो अचल श्रद्धा है उसे शासकों श्नौर प्रजा के सामने अविलम्व प्रकट करने का विचार कर + ओँ इस सिर पर डरा रहे विश्व-सकट के वारे मे कुदं कहने मे हिचकिचा रहा था, जिसका कुछ रषा के ही नहीं बल्कि सारी मानव-जाति के दित पर असर पडेगा मेरा ऐसा खयाल है कि मेरे शब्दों का उन लोगों पर कोई प्रभाव न पड़ेगा, जिनपर लडाई का छिड़ना या शान्ति का कायम रहना निभेर है। में जानता हूँ कि पश्चिम के चहुत-से लोग समभकते दे कि मेरे शब्दों की वहाँ प्रतिष्ठा है। में चाहता हूँ कि में भी ऐसा समकता। चेंकि में ऐसा नहीं समकता; इसलिए सें छुपचाप ईश्वर से प्राथना करता रहा कि वह हमसे युद्ध के सकट से वचाये । लेकिन यह्‌ घोपणा करते मे समे जरा मी हिचकिचाहट नहीं मालूम होती कि मेरा विवेक में विश्वास है । अन्याय के दमन क लिए




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