दर्शन और अनेकान्तवाद | Darshan Aur Anekantwaad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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| २ |
इतनी बड़ी सम्पत्ति के स्वामी होने पर भी आपमें उसका
ग़रूर बिलकुल नहीं था । आप घनी और निधन दोनी का ही.
समान आदर किया करते थे । व्यावहारिक शिक्षा के साथ.
आप में घार्मिक शिक्षा की भी कमी न थी । वह शाख्रीय रूपमे,
भले ही कुछ ,क़रम, हो मगर अजुभव के रूपमे वह पयाप्त थी ।
आपके समान वियाचुरागी ओर विद्रस्तेवी पुरुष धना
वगम बहुश कम देखने मे आगे ¶ योग्य चिद्धानो के समागम की-
आपको अधिक उत्कंठा रहती थी । उनके सहवास से आपने
भारतीय दशन शाखो के सिद्धान्तो का ख मनन किया था.इसी
लिये जेन दशन पर आपकी उचं दं की आसा थी ।
आपके जीवन मे रहे हुए इन सब गुणों की अपेक्षा भी
अधिक ध्यान *खेंचने वाली कोई बात है तो वह आपकी सचच-
रित्रता है । जहां पर धन सम्पत्ति फा आधिक्य होता है वहां पर
सच्चरिन्रता-आचरण सम्पन्नता-का प्रायः अभाव सा ही देखते मे
आता है परन्तु आप इसके अपवाद थे आपेमे धन सम्पत्ति का
आधिक्य होने के साथ श्रेष्ठ आचाश सम्पत्ति की विशिष्टता भी
पयाप्तु थी |
आप बीस वर्षं से अखंड बरह्मचारी थे । योगाभ्यास मे आपका
पूर्ण लक्ष्य था और पिछले दस वर्ष से तो आप सर्वथा आम
चै
` चिन्तनमे ही निमग्न रदते थे । आपकी प्रकृति मे द्वेष का नाम
तक.भी देखने में नही आता था । आप बारय कालमसे ही प्रकृति
के सूद और विधारों के उदार थे ।« सामाजिक और धार्मिकण '
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