दर्शन और अनेकान्तवाद | Darshan Aur Anekantwaad

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Darshan Aur Anekantwaad by हंसराज शर्मा - Hansraj Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है | २ | इतनी बड़ी सम्पत्ति के स्वामी होने पर भी आपमें उसका ग़रूर बिलकुल नहीं था । आप घनी और निधन दोनी का ही. समान आदर किया करते थे । व्यावहारिक शिक्षा के साथ. आप में घार्मिक शिक्षा की भी कमी न थी । वह शाख्रीय रूपमे, भले ही कुछ ,क़रम, हो मगर अजुभव के रूपमे वह पयाप्त थी । आपके समान वियाचुरागी ओर विद्रस्तेवी पुरुष धना वगम बहुश कम देखने मे आगे ¶ योग्य चिद्धानो के समागम की- आपको अधिक उत्कंठा रहती थी । उनके सहवास से आपने भारतीय दशन शाखो के सिद्धान्तो का ख मनन किया था.इसी लिये जेन दशन पर आपकी उचं दं की आसा थी । आपके जीवन मे रहे हुए इन सब गुणों की अपेक्षा भी अधिक ध्यान *खेंचने वाली कोई बात है तो वह आपकी सचच- रित्रता है । जहां पर धन सम्पत्ति फा आधिक्य होता है वहां पर सच्चरिन्रता-आचरण सम्पन्नता-का प्रायः अभाव सा ही देखते मे आता है परन्तु आप इसके अपवाद थे आपेमे धन सम्पत्ति का आधिक्य होने के साथ श्रेष्ठ आचाश सम्पत्ति की विशिष्टता भी पयाप्तु थी | आप बीस वर्षं से अखंड बरह्मचारी थे । योगाभ्यास मे आपका पूर्ण लक्ष्य था और पिछले दस वर्ष से तो आप सर्वथा आम चै ` चिन्तनमे ही निमग्न रदते थे । आपकी प्रकृति मे द्वेष का नाम तक.भी देखने में नही आता था । आप बारय कालमसे ही प्रकृति के सूद और विधारों के उदार थे ।« सामाजिक और धार्मिकण '




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