श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimadbhagwatgita

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Shrimadbhagwatgita by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्लो * ॥ ३ ॥ धीमद्रगवद्रीता . १०५९ न इस श्छीकमे जी भगवानने शर्माधानसे उदाहरण देकर अत्यन्त शूढ विषयका कथन किया है रथात्‌ सृष्टि कैसे बनती है! इस विश्वका रम्भ देसे हता ! उल वशन करते ह । तहां महद ' को जा योनि अर्थात्‌ गम धारण करेनेका स्थान कथन क्रिया सो मह- ह्रदय क्या है १ यहु वरून कियाजाता है । महत्‌ शब्दका मथ है बहुत बडा अत्‌ जा सक्ते बडा हो उसे अहत्‌ कहते हैं-फिर यह तो सब जानसक्ते हैं, कि सबसे बडा वह कहाज्ञावेगा जै सबसे पहले ही उसीको प्रघानके नामसे पुकारते है वैदिककोष निधशटुके तीसरे अध्याये जहां ®महत शन्द्के २५ नामेति गणना है तहां प्रधान शब्द्‌ भी लिखा है । इसलिये कृति यो महान्‌ कहसकते हैं । फ़िर सांख्यशार्मने अपने प्रथम अध्याय के ६१ वे सूत्रम ¢ ग्रकृतिमहान ” लिखकरे यह सिल किया है, कि प्रछृतिसे मददानु जो महत्त्व ज़िसे बुष्धिकि नामसे भी परकारते ह इसे महान्‌ कहते ह | & महत्‌ शब्दे वेदम्‌ सन ध्याय शन्द्‌ अति ह सो वैदिक कष्‌ निर्वडुकै भ्र से निक्रावकर तिवेनति है-= ९. बन, २० प्ुत्यः, ३, इदत, ४, उक्तितः, ४. तसः, १, तविषः, ५. मिषः, ८, श्रभ्वः, ६ त्रुः, १०. उक्ता, १ विहायाः, ५९, यन्द्‌!, १३, ववद्निय, १४. त्वत्त, * ४५, भम्फरणः, १६, माहिनः, ६७, ` गभीरः, ६८, कङहः, १६; रभसः, ९०. वूधन्‌ः २१. विरपशी,- ९९० श्रदुरुतुः १६. वहि, २४, वर्षतु ॥ - ` . ` |




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