श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimadbhagwatgita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्लो * ॥ ३ ॥ धीमद्रगवद्रीता . १०५९
न
इस श्छीकमे जी भगवानने शर्माधानसे उदाहरण देकर अत्यन्त
शूढ विषयका कथन किया है रथात् सृष्टि कैसे बनती है! इस
विश्वका रम्भ देसे हता ! उल वशन करते ह । तहां महद
' को जा योनि अर्थात् गम धारण करेनेका स्थान कथन क्रिया सो मह-
ह्रदय क्या है १ यहु वरून कियाजाता है ।
महत् शब्दका मथ है बहुत बडा अत् जा सक्ते बडा हो
उसे अहत् कहते हैं-फिर यह तो सब जानसक्ते हैं, कि सबसे बडा
वह कहाज्ञावेगा जै सबसे पहले ही उसीको प्रघानके नामसे पुकारते
है वैदिककोष निधशटुके तीसरे अध्याये जहां ®महत शन्द्के २५
नामेति गणना है तहां प्रधान शब्द् भी लिखा है । इसलिये कृति
यो महान् कहसकते हैं । फ़िर सांख्यशार्मने अपने प्रथम अध्याय
के ६१ वे सूत्रम ¢ ग्रकृतिमहान ” लिखकरे यह सिल किया है, कि
प्रछृतिसे मददानु जो महत्त्व ज़िसे बुष्धिकि नामसे भी परकारते ह इसे
महान् कहते ह |
& महत् शब्दे वेदम् सन ध्याय शन्द् अति ह सो वैदिक कष् निर्वडुकै भ्र
से निक्रावकर तिवेनति है-= ९. बन, २० प्ुत्यः, ३, इदत, ४, उक्तितः, ४.
तसः, १, तविषः, ५. मिषः, ८, श्रभ्वः, ६ त्रुः, १०. उक्ता, १ विहायाः,
५९, यन्द्!, १३, ववद्निय, १४. त्वत्त, * ४५, भम्फरणः, १६, माहिनः, ६७, `
गभीरः, ६८, कङहः, १६; रभसः, ९०. वूधन्ः २१. विरपशी,- ९९० श्रदुरुतुः
१६. वहि, २४, वर्षतु ॥ - ` . ` |
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