श्री घनश्याम सागर | Shree Ghanashyam Sagar

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Book Image : श्री घनश्याम सागर  - Shree Ghanashyam Sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(हे तीसरी उदयपुर तरंग हैं इसमें नप वर्णन उदयपुर बणन, आखेट विवाह प्रसंग का वन है | ` चोथी कांकरोली तरंग है इस में रायसमुद्र कीं करोली आदिका « कण मोड शामके दीप्तिंह कोठारा रावजी आदि के वर्णन है । पांचवी कृष्णलीला तक्म ह इमं कृष्णलीला युक्त तभी पद्च विशेषत/ रक्‍्खेगये हैं | छटी ऋत तरंग है इस में कवि की सुन्दर भाव मरी षट्कतुओं _ कौ कविताएँ सजी है । | सातवीं श्रङ्कार तरंग है इस मे सुग्धा मघ्वा प्रोदा गौर अमित्तारिकादि के कणन बडे मधुरतमहुएहं। अर्व वैराग्य तरंग हे इस में वेराग्य से संवलित सभी अनुपम . कविताएँ लिखी है । नवमी तरंग आनन्द रक्‍्खी है समे वची हहं समी विषयों की कविताओं का संग्रह है क्योकि प्रत्येक प्राणी को सभी रसॉकी सर्मी श्रकार के हावोमावों की आवद्यकता समय समय पर होती है । - इत मन्थ के इस रूपमे सम्पादन करने का यही भावहं किस्त॒ति से ` प्रारम्भ आनन्द मे जीवक परिणति होती है शुंगारादि रस मध्य मैं आते. हक्ही दंग मेने जपनायाहं। ^ | सागरे भाष माषरर्दो षी तोड मरोड आदि सब कविकी हैं... केवल इन तरगों के पूर्व के दोहे मैंने लिखे है और स्थून, २ पर बो जौ कवितार्पै अपूर्ण रही उस में कुछ ग्द्द मैंने रखूखे हैं। क्यों कि कवितोंगें रिक्त स्थान अच्छा नहीं रहता अतः इस पडता के लिए रसिक + एवं कविजन क्षेमा करेंगे । जो कुछ न्रुटियां है वह मेरी है और न्दं स्व कमिकादहं।




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