ज्ञानगोष्ठी | Gyanagoshthi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : ज्ञानगोष्ठी  - Gyanagoshthi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल - Dr. Hukamchand Bharill

Add Infomation About. Dr. Hukamchand Bharill

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ज्ञानगोष्ठी ] । [ १५ प्रयोजन से श्ञानी श्रावक की श्रन्तर्वाह्य दश्चा' से सम्बन्धित प्रदनोत्तर दिए हैं । इसप्रकार मोक्षमागे से सम्बन्धित श्राध्यात्मिक विषयों के वाद तत्त्वनिर्णय हेतु जिनागम मे वहुचचित संद्धान्तिक विषयों के भ्राघार पर दसवें से सत्तरहवें श्रध्याय में क्रमदा: द्रव्य-गुण-पर्याय, निमित्त-उपादानः निरचय-व्यवहार,' प्रमाण-नय, कर्त्ता-कर्म, क्रमबद्धपर्याय एवं पुण्य-पाप' -- इन विषयों का समावेड किया गंया है । (२) विषय-विभाजन का श्राधार :~ किस प्रन को किस विषय कै श्रन्तगेत लिया जाए ~ यह निणंय करने में सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि एक ही प्रदन श्रनेक विषयों से सम्बन्धित मालूम पडते थे । एसे परदनो . का विषय-निर्घारण उनके सन्दर्भ के श्राघार पर किया गया है; जैसे - ` प्रदनक्तमांक १२२ सम्यग्दशेन या मेद-विज्ञान कै श्रष्याय में भी रखा जा 'सकता था, परन्तु आात्मानुभूति के प्रयत्न के सन्दर्भ में पुछा गया होने से न उसे श्रात्मानुभूति के श्रध्याय में रला गया है । (३) प्रश्नों के क्रम-निर्धारण का झाधघार :- यद्यपि प्रत्येक श्रष्याय में संकलित श्रधिकांश प्रदन श्रागे-पीछे के प्रदनों से सम्बन्धित नहीं हैं, तथापि कई प्रदन लगातार परस्पर सम्बन्धित हैं, श्रतः उन्हें क्रम में रखा गया है । अध्याय के प्रारम्भ में सरल एवं विषय को श्रघिकतम स्पष्ट करनेवाले प्रदन रखें गये हैं । (४) क्रमाँक-पद्धति :- प्रत्येक प्रदन के ऊपर दिये गये क्रमांक का क्रम भ्रादि से लेकर श्रन्त तक कायम रहा हैं, इससे यह पता चलता है कि पुरी. पुस्तक में कितने प्रश्नोत्तर है । तथा प्ररन के अन्त में दिया, गया क्रमांक मात्र सम्बन्धित, अध्याय का क्रमाक है, इससे प्रत्येक. श्रघ्याय के कुल. प्रदनोत्तरों की संख्या का पता चलता, है। (४) प्रमाख-पद्धति :- प्रत्येक प्रदन के अन्त में उस प्रश्न का अ्रमाण भी दिया गया है कि वह किसमें, किस वर्ष के .किस माह में; किस पृष्ठ से लिया गया है, ताकि इन प्रदनों की प्रामाणिकता असन्दिग्घ रहे । प्रत्येक अध्याय, के श्रन्त में उस विषय से सम्बन्धित भजन या उद्धरण दिए गए हैं। जैसे कारणशुद्धपर्याय के. प्रकरण के श्रन्त मे नियमसार के उस प्रकरण को उद्धृत किया है, जिसमे कारणणशुद्धपर्याय की चर्चा की गई है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now