जीवी | Jivi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
श्रेणी :
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पद्मसिंह शर्मा - Padmsingh Sharma
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पन्नालाल पटेल - Pannalal Patel
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला प्रकरण
प्रथम भेंट
काब्रिया पहाड़ की तराई म जन्माष्टमी का मेला लगा था । भगवान्
के स्नान के लिए, ताज़ा पानी लेकर श्राने वाली वर्षा दोपहर होते-होते
थम गई थी । चलते हुए पवतों-जैसे बादल पूर्व की श्रोर जा रहे थे । सूर्य
भी धरती पर भोकने लगा था]
विशेष रूप से युवक-युवतियों से उमड़ती हुई तराई मीनो के मौन
के बाद श्राज कभी गाती सुनाई देती थी, तो कभी ऐसी लगती थी जैसे
श्रलगोभ्े बजा रही हो । पहाड़ की दीवार में बने शिवजी के पुराने
मन्दिर का घण्टा तो बजता ही रहता था । कभी-कभी व्यापारियों की
श्रावाज़ इस कोलाइल के ऊपर तैर श्राती थी ।
एक तो जवानी वैसे दी श्रल्दड़ होती है श्रौर उसमें भी व श्राई थी
मेले मैं । किनारों को डुबाती नदी की बाढ़ की भाँति यदद जवानी श्राज
श्पने उभार पर थी । कोई चूड़ियाँ खरीद रही थी तो कोई कपड़े की मोती जड़ी
तनी* ले रही थी । युवक भी गोटे वाले फुँ दने खरीदकर श्रपने श्रलगो मो
की जोड़ी को सजा रहे थे । कोई ना रियल ले रहा था तो कोई सूखी गिरी
१. अंगरखे या बंडी को बाँधने की डोरी; जो बटन के स्थाम पर काम
देती है ।
जीवी--१
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