जीवी | Jivi

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Jivi by पद्मसिंह शर्मा - Padmsingh Sharmaपन्नालाल पटेल - Pannalal Patel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला प्रकरण प्रथम भेंट काब्रिया पहाड़ की तराई म जन्माष्टमी का मेला लगा था । भगवान्‌ के स्नान के लिए, ताज़ा पानी लेकर श्राने वाली वर्षा दोपहर होते-होते थम गई थी । चलते हुए पवतों-जैसे बादल पूर्व की श्रोर जा रहे थे । सूर्य भी धरती पर भोकने लगा था] विशेष रूप से युवक-युवतियों से उमड़ती हुई तराई मीनो के मौन के बाद श्राज कभी गाती सुनाई देती थी, तो कभी ऐसी लगती थी जैसे श्रलगोभ्े बजा रही हो । पहाड़ की दीवार में बने शिवजी के पुराने मन्दिर का घण्टा तो बजता ही रहता था । कभी-कभी व्यापारियों की श्रावाज़ इस कोलाइल के ऊपर तैर श्राती थी । एक तो जवानी वैसे दी श्रल्दड़ होती है श्रौर उसमें भी व श्राई थी मेले मैं । किनारों को डुबाती नदी की बाढ़ की भाँति यदद जवानी श्राज श्पने उभार पर थी । कोई चूड़ियाँ खरीद रही थी तो कोई कपड़े की मोती जड़ी तनी* ले रही थी । युवक भी गोटे वाले फुँ दने खरीदकर श्रपने श्रलगो मो की जोड़ी को सजा रहे थे । कोई ना रियल ले रहा था तो कोई सूखी गिरी १. अंगरखे या बंडी को बाँधने की डोरी; जो बटन के स्थाम पर काम देती है । जीवी--१




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