भारत के राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के भाषण | Bharat Ke Rashtrapati Rajendra Prasad Ke Bhashan

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Bharat Ke Rashtrapati Rajendra Prasad Ke Bhashan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ उपप्रघान मंत्री ओर मन्वरिपरिषद्‌ और संसद्‌ के सदस्यों तथा सारी जनता का पूणे विश्वास प्राप्त है । में उस विष्वास का पात्र बनने के लिए पूरा प्रयत्न करूंगा । में यह भी आशा करता हूं कि यहं देश दूसरे देशो का विदवास प्राप्तं करने मे तथा ऐसी सहायता प्राप्त करने मे. जो कि इसे किसी समय आवश्यक हो, सफल होगा । | स्वास्थ्य पान का आमन्त्रण देकर जो दभकामना आपने प्रकट कीहं वहीमेँभी सहषे प्रकट करता हुं । दिल्‍ली में नागरिक अभिनन्दन ता. ५-२-५० को दिल्‍ली नगर पालिका के मानपत्र का उत्तर देते हुये राष्ट्रपति ने ,कहा-- दिल्ली म्युनिसिपैलिटी के अध्यक्ष, सदस्यगण और दिल्‍ली दहर के रहने, वाके भाइयों ओ. वहिनो दिल्‍ली शहर की ओर से आप ने जिस समारोह और प्रेम के साथ मेरा स्वागत किया वह आप के योग्य है और में आप को हृदय से धन्यवाद देता हूं । दिल्‍ली बहुत पुराना और ` एतिहासिक दाहर है । इस ने अपनी हज़ारों वर्षों की जिन्दगी में, बहुत कुछ देखा है भारत के इतिहास की बहुत घटनाय इस शहर के इर्द-गिदं मे, इस की सड़कों, गलियों और ` कचो में हुई हैं, उन की शहादत यहां मीलों तक फैले हुए खण्डहर और खड़ी इमारतें दे रही हैं । इस ने हिन्दू राजाओं के काल से ले कर मुसलमानी जमाने और अंग्रेज़ी राज्य तक में राजधानी होने का गौरव पाया । इस के इतिहास में चढ़ाव उतार भी बराबर होते रहे हैं अगर समय समय पर इस की सड़कों और चौराहों ने बड़े बड़े शानदार जशन और जलस देखें हूं तो उन्हीं सड़कों, चौराहों और गलियों ने कत्लेआम भी देखें हैं। यद्यपि बहुधा यह राजधानी रही तो भी समय समय पर यहां से हट कर वह॒ दूसरी जगहों में भी चली गयी । ठीक है, यह सब होता रहा पर, चाहे जिस नाम से हो दिल्‍ली जैसी की तैसी बनी रही हैं और बनी रहेगी । अगर इस ने समय समय परः बड़े बड़े राजा महाराजाओं और नवाबों का, जो बहुत तैयारियों के साथ यहां आया करते थे, स्वागत किया है, तो. इसने ज़माने के मारे हुए लाखों निर्वासित लोगों को भी अपनाने का सौभाग्य पाया है । इस ने यदि अधिकार यवत गवर्नर जनरल और वायसराय का स्वागत किया हूं तो इस ने ब्रिटिश सरकार से लड़ती हुई कांग्रेस के अध्यक्ष का भी उसी उदारता ओर उत्साह के साथ स्वागत किया है । यदि इसने स्वराज्य की स्थापना ' कादूश्य देखा ह तो वह दुर्य भी देखा हं जब पाबन्दी लगाई हुई काग्रेस का वह्‌ अधिवेशनं किया गया जब पुलिस चारों तरफ दौड़ भाग कर रही थी और इसी घंटाघर के नीचे देश के कोने कोने से चुप कर आये हुए प्रतिनिधिं खुर कर अधिवेदन कर रहे थे । इस ने १९३२ की २६वीं जनवरी को उस अधिवेदन का दृश्य देखा ओर १९५० की जनवरी को देखा गणराज्य की ` घोषणा के समारोह का दुस्य । इसने १९२० के उन दिनों के आपस के स्रातभाव और मेल को




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