दयानन्द महाविद्यालय संस्कृत-ग्रंथमाला | Dayanand Mahavidhyalay Sanskrit-Granthmala

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Dayanand Mahavidhyalay Sanskrit-Granthmala  by स्वामी दयानन्द -Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पा छे वेदिक वाङ्मय का इतिहासं । द्वितीयाध्याय उपलन्ध. ब्राह्यणो का वणेन ऋग्वेदीय ब्राह्मण १-पेतरेय ब्राह्म ण* ग्रन्थ परिमा ण--ऐतरेय ब्राह्मण में झाठ पश्चिकायें हैं । प्रत्येक पश्चिका में पांच अध्याय हैं । कुल मिला कर सारे ब्राह्मण मे चालीस अध्याय है| चि दो ष ता यें--इस व्राह्मण मे बराह्मण प्रवक्ता आचाय की सम्मतिं बहुत कम उद्धृत की गइ हैं | केवल ७ । ११ ॥ में पैड़ग्य और कौशीतकि का मत उद्भत दे | इत से कीथ परिणाम निकालता है कि यह अध्याय ही प्रक्षिप्त है । * हमारा ऐसा हीं | प्रतीत होता है महिदास अन्य ब्राह्मणों के प्रवचनकर्ताओं के समान प्राचीन परम्परागत सामग्री में बहुत कम हस्तक्षेप करता था 1 ऐतरेय ब्रा० की प्रथम ६ पश्चिकाओं में सोमयाग का वरीन हैं । अन्तिम दो पश्चिकाओं में राज्यामिषेक का कथन है । सकट न--उस परम्परा के श्रनुसार जो सायण को ज्ञात थी, इस ब्राह्मण क प्रवक्ता सदिदात ऐतरेथ है । इस बात के मानने में अरुमात्र भी आपत्ति नहीं कि महिदास डी ने इन चालीस अध्यायो का संकलन किया | पाशिनि को उतने ही न्राह्मण का ज्ञान था जितना हमारे पास पहुंचा है ज्रिशच्चत्वारिदतों ब्राह्मण संज्ञायां डण ! ५।१।६२॥ १.५ प्ाकन७भम+ ग~-पेतरेय ब्राह्यणम्‌-{)35 ^7- {8162 312 11111818 स- १ क~पेतरेय ब्राह्मणम्‌-मार्टिनहीग दास सम्पादित | मुम्बै गवनेमेट द्वारा प्रकाशित । सन्‌ १८६३ |. भाग १ ३ न ख-पेतरेय ब्राइणम्‌-सायणभाष्य- समेतम्‌ । सत्यनत सामश्रमी द्वार ` सम्पादित । 4488110 30|| ग एष्ट, (भलया सम्वत्‌ १६६२-१६६२.माग ६-४ | म्पद्क 1060001 4 00.6९- १६४. 80100. सन्‌ १८७६ | घ~पेतरेय ब्राह्यणम्‌-साययमाष्य- समेतम्‌ । सम्पादक-काशीनाथ शाखी आनन्दाश्रम पूना | १८६६ | भमि कद + २ देखो कीथ ऋग्वेद के बाह्मण १०२४




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