सुधर्म जैन पाठमाला [भाग २] | Sudharma Jain Pathmala [Part 2]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूत्र-बिभाग - है« श्देश प्रश्नोतरी { ५
पूर्ण नप्ट कर देते है 1 भ्रतः विराधकता प्रौर सम्यक्तवादि
चनादा से बचने के लिए भी प्रतितिमए भावश्यव है 1
प्र. कायोर्स्म किसे कहते हैं ?
उ : १- अ्रज्ञान,मिथ्यात्व, भव्रत श्रादि की सामान्य शुद्ध
लिए अथवा २. प्रनजान में लगे हुए प्रतिचारो कौ शुदि वे
मए प्रायद्वित्त के खूप में नियत कुछ समय तक देह की ममता
हकर तीयैकरो का ध्यान लगाना ।
प्र. : कायोत्सर्ं श्रावश्यक बयों है ?
उ. * मार्ग में चलते हुए जो काटे पर में लगकर घाव
करके घाव के भीतर रहे रक्त को विपाक्त कर देते हूँ, उन कांटों
को निकालने के साथ उनके द्वारा किये हुए घाव में रहे हुए
विपाक्त रक्त को निकालने के लिए घमड़ी को इधर-उधर दबाने
से होने वाले दुःख के प्रति ध्यान न देते हुए जेसे चमड़ी को
इधर-उधर दवाता भ्रावश्यक होता है, जिसमे वह् विपाक्त रक्त
निकलकर घाव शुद्ध हो जाय, उसी प्रकार भ्रविवेकं भ्रतादधानी
श्रादि से लगे श्रतिचारों मे जो ज्ञानादि भें घाव पड़ते के साथ
रक्त विपाक्त वन जाता है, उसे निकालने के लिए देह-दु स
की ममता छोडकर कायोत्मगे करना प्रावश्यक है जिससे वह
विपाक्त रक्त निकल कर ज्ञानादि के घाव धुद्ध हो जाएें ।
प्र प्र्याश्यान किसे कहते हैं? 1
उ. : १. परजान्, प्रवत, मिथ्याइव श्रादि की क
शुद्धि के लिए झसवा २. जानते हुए लगे श्रतिचारों १) आदि
कं लिए प्रायर्चित रूप में नमस्कार सहित (
प्रत्यास्पान घारण करना भ्रयवा ३. प्रायशिपियं ^
भी तप लाभ के लिए परत्याष्यान् करना 1-, „¢
म
User Reviews
No Reviews | Add Yours...