हमारे काव्य निर्माता | Hamare Kavya Nirmata

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Hamare Kavya Nirmata by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ काव्य की विभिन्न धाराएँ फरने घाले कि में प्रखर प्रतिमा का दोना आवश्यक है } प्रधल बेग से उमइती हुई भाव धारा्ों पर उचित नियन्त्रण करके उन्हें शब्द समृद्द में वांघना ्ासानी का फाम नहीं हैं । यदि प्रवन्ध काव्य प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एक विशाल यन तो प्तक कान्य कुशल माली द्वारा सजाया हु उपवन टै जिसय काव्य कुसुमों की मधु सौरभ पाठफों को श्ानन्द विभोर कर देती है । रौतिकाल के मद्दामदिम कान्यरसिको ने इस रली में पते कार्व्यों का निमीण किया टू । गीति काव्य गीति फाव्य वर्यं विषय फा संगीतात्मक पदो मे प्रतिपाध्न करता हैं। यदद घटनाप्रधान नहीं भावप्रधान दोता है। इसका यण्यं विषय भाव श्रौर श्नुमूति द । भावावेश '्ौर मस्ती की अवस्था इसमें एक नवीन सजीवता उत्पन्न कर देती दै। प्रधानतः संयोग 'धौर वियोग श्ंगार का इसमें घड़ा ममंस्पर्शी वर्णन हुआ हैं। सूर, मीरा घोर मद्दादेदी वर्मा के उत्दष्ट गीत इस फाब्य के उदाइरण हैं । ^ क]




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