समयका सदुपयोग | Samayka Sadupyog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निन्दाया १५ पे निसा कार्य यही टै करं र्याज्य विधयका सेन करमेके निमित्तम बुग्हें समप-समय पर घुमा जो चिन्तने बरना पट्टा, असक संस्वार युनदे चिल पर्‌ सधिवाधिव जमा होते रहै । मौर भुनी मति यद्यपि पटले दुदी, फिरमी बूनकी मूल सिच्छकरेः विदद भुन मम्बारोका जनिष्ट परिषाम भुनके जीवन पर हूना । त्यागकैः निमित्तम, निपेधकरे दैतुने कौ गभी निन्दा धंतमें हमारा अवस्याण ही करती है। जितलिभे ह्मे निन्दामे दूर रहना चाहिय। किसीके भी दुराघरणती चर्चा या चिन्तनमें ने पडनेमें ही हमारी सुरक्षा है। समाजमें कोओ नैतिक दर्पटना घटती है, तो धीरे-धीरे अुसकी घर्चा शुरू हो जाती है। छोगोंके लिअे वह यैक जिज्ञासाका, चर्चकि बौर भेदः प्रकारमे अपनी नीति-सम्बन्धी निष्टा ओर निन्दते झन- श्रेष्टला दिखानेका अप्रत्यदा रीतिसे बच्छां मौका बनं जालमे प्राप्त जाता टै। बार-बार असी विपय पर आपसे चर्वा होती होनेवाष्टा रस॒ टै मौर धादमे भुमसे सवका मनोरजन भी होने लगता है। धरनिन्दामें भपनी पवित्रताके आभामका आनन्द होता है और दूसरेके प्रति देमारे मनमें बीर््या हो, तो अुसका कुछ अशोमें शमन दहनेका सन्तोप ह्मे भिता है। अिंप्के सिवा मनुष्य जिस विपयके श्रति अष्चि दिखाकर अुसका निषेघ करता है, मूसके प्रति वट्‌ कितना ही तिरस्कार दिखानैका ढोग करे या आभास पैदा करे, तो भी अुस विधमकी चर्चामें ही मुसे थोडा-वहुर्त रस आने लगता है। विपयोका रस मनुष्य कभी तरहसे ले सकता है। र्यागदुद्धिसि किये गये वर्णन-चिस्तन में अूपर अूपरसे देखने पर रस्ानुभव न लगता हो, तो भी सूक्ष्मतासे जाय करने पर पता चलेगा कि मनुष्य धिम निमित्ते भी रमातुभव लेता हुआ दिखाओ देता है। बौर बिलकुल पहले ही मौके पर न हो, तो भी ज्योज्ज्यों विपयंकी धर्चा बढ़ जाती है, त्योश्यो अुसमें रस वैदा हमे बिना नहीं रहता। चित्तका यह धर्म है। जिसमें विद्वान-अविद्वान, सज्जन-दुर्जत, साथक और साधारण मनुप्यका भेद नहीं है।




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