बिन बुलाया मेहमान एवं अन्य कहानियाँ | Bin Bulaya Mehmaan Evam Anya Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
755 KB
कुल पष्ठ :
73
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मैं चौंक गया था 1
“वह यही रहती है । साल भर पहले वह मुझे मिली थी, फिर नहीं
मिली है । थीघ में सुना था दह बीमार थी । इसी बहाने हो भाते हैं ।””
महल समान घर था दमयन्ती की ससुराल । संगमरमर जड़ा बैठक
का बमरा । परिवार के वयोवुद्धो के तैल-चित्र दीवारों पर टगे हुए थे ।
धरती पर मोटे मोटे गलीचे । घल से सटकते बत्तियों के भाड़-फानूस ।
दमयन्ती को देशकर में भाश्चय॑-चकिति सा हो गया । पीला चेहरा,
दुबलाया शरीर, निरथंब बु दू ढती भाखे । वह मतंकी के बजाय किसी
सम्पन्न घर की बीमार बहू लग रही थी ।
*“दमयन्ती, बया सुम स्वस्थ नही हो ?” मैंने पूछा
दमयन्ती ने मेरी तरफ देखा हमारी भ्रात मिली । उसने मसिं भूका
लो भौर सवय को सम्मालने के लिए भन्तू से बातें करने लगी ।
दमयन्ती ने उम छोटी सी मेंट के समय मुभ से एक शब्द भी बात
सही की । विदा सेते समय वह चादी की थाली मे पान लेकर मेरे सामने
भा खड़ी हुई । मैंने देखा वह मेरे चेहरे में धूर रही थी । मैं मुह फेर कर
भन्तू के पीछे घलने लगा ।
पीछे से भावाजू भायी- सुन्दरदा ।”
मैं मुहर खड़ा रहा
दमयन्ती ने मेरे पास झाकर कहा-“बुरा मत मानिएगा, सुन्दरदा ।”
भौर मैंने देखा उसकी भांसो मे प्रामू तैर रहे ये। फिर उसने भ्रष-
स्चरी भावान् मे कटा “व पापरो सदा याद करनी हू ।” प्रर उसने
साही के खिसकते पत्लू को ठीक कर सिर पर लिया ।
टैगसी में भन्तू ने बहा- “दमयन्तों ने तुम से दात नहीं बी, पर मुझ
से तुम्हारे विपय मे सव वृद्ध शृद्धा ॥
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