बिन बुलाया मेहमान एवं अन्य कहानियाँ | Bin Bulaya Mehmaan Evam Anya Kahaniyan

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Bin Bulaya Mehmaan Evam Anya Kahaniyan by राधाकृष्णा चौदवाणी - Radhakrishna Chaudhvani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मैं चौंक गया था 1 “वह यही रहती है । साल भर पहले वह मुझे मिली थी, फिर नहीं मिली है । थीघ में सुना था दह बीमार थी । इसी बहाने हो भाते हैं ।”” महल समान घर था दमयन्ती की ससुराल । संगमरमर जड़ा बैठक का बमरा । परिवार के वयोवुद्धो के तैल-चित्र दीवारों पर टगे हुए थे । धरती पर मोटे मोटे गलीचे । घल से सटकते बत्तियों के भाड़-फानूस । दमयन्ती को देशकर में भाश्चय॑-चकिति सा हो गया । पीला चेहरा, दुबलाया शरीर, निरथंब बु दू ढती भाखे । वह मतंकी के बजाय किसी सम्पन्न घर की बीमार बहू लग रही थी । *“दमयन्ती, बया सुम स्वस्थ नही हो ?” मैंने पूछा दमयन्ती ने मेरी तरफ देखा हमारी भ्रात मिली । उसने मसिं भूका लो भौर सवय को सम्मालने के लिए भन्तू से बातें करने लगी । दमयन्ती ने उम छोटी सी मेंट के समय मुभ से एक शब्द भी बात सही की । विदा सेते समय वह चादी की थाली मे पान लेकर मेरे सामने भा खड़ी हुई । मैंने देखा वह मेरे चेहरे में धूर रही थी । मैं मुह फेर कर भन्तू के पीछे घलने लगा । पीछे से भावाजू भायी- सुन्दरदा ।” मैं मुहर खड़ा रहा दमयन्ती ने मेरे पास झाकर कहा-“बुरा मत मानिएगा, सुन्दरदा ।” भौर मैंने देखा उसकी भांसो मे प्रामू तैर रहे ये। फिर उसने भ्रष- स्चरी भावान्‌ मे कटा “व पापरो सदा याद करनी हू ।” प्रर उसने साही के खिसकते पत्लू को ठीक कर सिर पर लिया । टैगसी में भन्तू ने बहा- “दमयन्तों ने तुम से दात नहीं बी, पर मुझ से तुम्हारे विपय मे सव वृद्ध शृद्धा ॥ 29




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