सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक | Surya Ki Antim Kiran Se Surya Ki Pahali Kiran Tak

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Surya Ki Antim Kiran Se Surya Ki Pahali Kiran Tak by रामगोपाल बजाज - Ramgopal Bajaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतिहारी महतरिका प्रतिहारी महत्तरिका प्रतिहारी भहत्तरिका अतिह्ारी महत्तरिका अत्तिहारी महत्तरिका तिहारी मदेत्तरिका प्रतिहारी हतर हैं। ने उन तक कोई बाए प्रगवो हैं, न उन पर डोई प्रमि- किया होती है । उप भी बना दे । कया अन्तर पड़ता है ! (ुण रुक कर) अभी मैंने महामातव, रायपुरोदित बौर महा बनाधिक्त को भीतर माते हए देषा हैं। महाराज को उदान सेहटासोन! जिस मन स्थिति में वे हैं, उसमे इन मोगों हे सामना नहीं दाना चाहिए । ( फीकी मुस्कान से) कोई कुछ नहीं कर सकता, बावली ..! श किसी का बस चलता, तो ऐसी अनहोनी होती ही क्यं दिराम। (णमेद भरे स्वर में) एक बात बताओँ * (मतिहारो को मोर देखती है। कया? (शुछ हर ड सो गहादोगि को बचपन से जानती हो। . कया यह सच महाराज से ने से पहले किसी की वाग्दत्ता थी ? लग पि हौ कौन ये वे ? उन्हीं के जंसे एक द्रि पक्क नाम या प्रतोष लेकिन अब दरिद नहीं हूँ। बूत बडे ब्यापारी हो थये हैं। पास ही, अवती में लेक्नि यहाँ भी उनका एक आासाइ है। (क्षणिक विराम) क्यो? क्या दभा? कचुकी ने मुझे बताया टैकि ॥ (सय होकर) ष्या? जाज दोपहर को बहू उस रास्ते ++ तो उस भवन में शाइ-पोछ हो रही थी । उसने प्रा ९ या गया हुए स्वामी भा रहे है। मोह... सोचती-सो र देखती हैं। प्रतिद्वारी ; (उस ओर देखते पं कौ भतम ˆ ९ शि का




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