वैद्य दीपक | Vaidya Deepak

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Vaidya Deepak by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनचरित्र, १५ अपणे चतिर्योकना दम प्रगट करो यो हित शिक्षाक मेने तीन दिन विचारी उसमे ये शोक याद आया यतः माया तावर परोक्ता, पैशन्य च दिगंबर, वुद्धियैसति वैदधयु, मृतं शि- वशासने १ तथ उनोंसे कद्दा पौरपन्नी भीख मुझे मांगणी नहीं उपगार करणा और कठाकौशठ और विद्यर्सिही निवीदद करणा गुरु परंपरा श्रीसाधूजी मद्दाराज छोकरे पढ़ते पूंजणीमाठा पुस्तकादि धमे व्यवसाय करते ये सुते पुनय रिच द्धि फेरणी सरू करणी पटी जभ ये प्रथम पैवदीपकका संग्रह सरू करणा किया परत वाण २ ठिखिता गया डाकतरीकी वडी क्रिताव गुजराती अक्षरम २० दजार करीव ग्रथ एकं फारसीकी वणाई मगनम्‌- ठजी पासथी उसकूं में बरसों तक पदी थी अब इद्दांपर बहोत श्रेय युको मठि भौर पढ़ा उ० श्रीहिमतमठजीसें प्रश्नो्तर सार्धशतक दौर पश्न शैन प्रश्न विशेष शतक धमी- नेद प्रश्च संदेद दोठावटी बौसवंसावटी इयादि १५ गंध मेंने लिखे र ठिखाकर पढ़ा संवेगी साधु श्रीदंसविजैजीसें इग्पारे अपूवै अंध ठेकर ङिखाये पे स्यादवाद मंजरी स्याद्यादरज्ञावतारिका द्विज सुख 'चपेटीका दिगंबर चौरासी चोरके प्रभोत्तर सम्यक्ते सप्तति अदन्नींति आदिक मुनी पूनमचंदजीसें भंगचूठिया सूत्र घंगचूलिया सूत्र मुनी संवेगी भक्तिविजिजीसें गायश्रीकी पट्मतोंकी व्याख्या इत्यादि इजार रुपेके अपूवे अंथ टिखवाया छांपेके जैनतत्वादर्स समकित शत्योद्धार टूंढक मत समीक्षा चतुर्थ स्तुती- निर्णय गप्पदीपका समीर पाठनपुर प्रश्नो्तर संबोध सत्तरी योगशाख्र भरतेश्वर वाहुबठी यृत्ति धूत्तोस्यान किश्चियनमत समीक्षा सीत्तर पुस्तक जेनके छापेके पढे और मोछ ठिये चार थपूर्व अंथ सेठ चांदमठनी ढढाके पाससे ठेकर पढे संगीत शास्त्र १ मेषमे- रिजिम विधा २ गोतमजीका न्यायसूत्र इ सदाश्रत नास्तिकोंका ४ आगम प्रकाश सला प्रकाश इत्यादि केइयक अ्रंध स्वर्ग नरक नहीं मानणेवाठे और ईश्वरकूं जगत्कत्ती मानकर कलंक टगणेवाठे नास्िकोँका पटा आस्तिक नास्तिक संवाद मनुस्सृती गणित ठीछावती शिक्षा दर्पण मतठय संग्रद् रुकमणीका व्यावठा अमरकोश टीका छंद यूत्त रस्नाकर पिंगल धन्वेतरी कोश देशी नाममाठा मेपदूत काव्य मेघमाठा भइटी प्रश्नग्रंथ पंचपक्षी स्वरोदय जन तथा शिवचरणदासकृत ताजीरायतर्हिद इत्यादिक दोस पुस्तक फेर येघक मावप्रकाश वैधरदस्य अमृतसागर काटज्ञान योगशतक वैधररन चुददसिपंड्रलनाक ` भाग ८ घजीधमेजरी चरक शुश्रुत वागमह अष्टांगहृदय योगतःगणी भादि साठ प्रय : पदचारिका पारादी मानखागरी जोतिपके दयादि अनेक शाख ष्टे सो मेरे उपाश्रयमे ‡ द्ाजर दै, सं० १९५२ में कसतूरचंदजी जतीके चैठे नेमच॑दवीने जो उपसगा १० हुकमचंदजी जतीकों घेचा था सो तेइससे रपेमें मेंने खरीद दर पुस्तकोंका भंडार रयापन करा तेरा पंथी घिवराजजी हुकमचेंद्वी पनाटाठजीकी श्रद्धायुद्ध कराय चेटाकर जती भेष दिया ५.4 टीका पददर्शन न्याण व्याकरणकी पुनरटृपी १० उयदया- द वत ~क, ५




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