राधातत्व का मूल | Radhatatva Ka Mool

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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^ # 4 इह्लोक में शरण लें रहा हूँ, मेरी सारी भलब्मी नप्ट हो, में तुम्हीं को वरण क्र रहा हूँ ॥। है भादित्यवर्गा श्री, तुम्हारे तपोहेतु (नियमटेतु) थे वनस्पति विल्ववृषठ धमिजात हुए हू; उसके फलसमूह तुम्हारी पा से हो मेरी भन्तरिन्दिय-बहिरिन्द्रिग-सम्बन्धिनी साया (भज्ञान) भौर ततु- बायंसमूह भोर भ्रलइमी का भपनोदन करें ॥ देवसख (महादेव के सखा वेर) भौर कीति (यश भ्रयदा कौर्तिनान्मी कीत्यंभिमानिनी दक्षदन्पा) मणिसह (मणि मणिरत्त के भर्य में भयवा कुवेर कोपाप्यक्ष मणिमद्र के श्र्थ में) मेरे समीप भाएं; में इस राष्ट्र में प्रादुर्भूत हुमा हूँ, मुझे कीति सौर *ऋद्धि दान करे।। शुधा-पिपासा से मलित येष्ठा प्रलदमी भा भ नाश फल्या; सारो श्रमूति भौर असमुद्धियो को मेरे घर से विताहिते करो ॥। गंघलझणा दुराधर्पा नित्यपुप्टा (शस्यादि द्वारा) शुप्कगोमयदती (भर्यात्‌ गवाइदादिवहुपशुसमुद्धा) . सर्वभूत की ई्वरी उस श्री का यहाँ भाह्वान कर रहा हूँ ॥ हे श्री, मन का कामना-रांवल्प, वावय बा सत्य (ययारपता), पथुप्नों का रूप (भर्थात्‌ झीर भादि) श्ौर भन्न का रूप (भक्यादि चतुविघ) हम जिसमें पाये; मुझमें श्री भौर यदा भ्राश्रय प्राप्त हो ॥ कदम (ऋषि) द्वारा तुम भपत्यवती हई हो (र्यात्‌ बद॑म नं तुम्हारा भ्रपत्यस्व स्वीवार किया है); भतएंव हे श्रीपुत्र कर्म, तुम मेरे घर में निवास करी; भौर पद्ममालिनी माता श्री को मेरे कुल में निवास कराप्नौ॥ सरि पपू स्निग्ववारियों को उत्पन्न करे; है श्रीपुप चिकनीत, तुम मेरे चर में निवास करो; भौर माता श्रीदेवी को मेरे घर में निवास करारी ॥ है जातवेद, तुम मेरे लिए भार्दा, गजशुण्डाग्रदती, पुप्टिहपा, पिगलवर्णा पर्ममालिनी, चन्दामा, हिरष्यमयी, लक्ष्मी का भ्राद्वान करो ॥ हे जातवेद, तुम मेरे लिए भ्रार्दा, यप्टिहस्ता, सुदर्णा, हेममालिनी, सूर्याभा, हिरण्यमयी लक्ष्मी वा भ्राह्वान करो ॥ हे जातवेद, मेरे लिये तुम उस झनपगामिनी लद््मी का भ्राद्वान करो, जिसके प्रन्दर मं हिरण्य, प्रचुर सम्पदा, दास, घोड़ें झौर अनेक पुरुष पाऊँगा ॥” उपयुंबत श्रीसुवत का विद्लेपण करने पर हमें पता चलेगा कि यहाँ दणित श्री या. लक्ष्मी देवल सम्पदर्ुपिणी और कान्तिरुपिभी मात्र नहीं हूं, इस वर्णन में श्री या लक्ष्मी के श्रत क विशेषणों के भ्रन्दर परवर्ती काल कौ सदमौदेवौ के ्रनेक पौराणिकः उपाख्यान के बी मी चपि हये हूँ! लदमी को यहाँ हरिणी कहा गया है, पुराण में लक्ष्मी का हरिणी रुप (१) 'वित्वो लक्षम्पाप करेश्मवतू' इति वामनपुराणे काव्यायनदयनातु । (सायण) र्‌




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