नंददस ग्रंथवली | Nanaddas Granthavali

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Nanaddas Granthavali by बृजरत्नदास - Brijratnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) समीचीन द। भक्त फे टिए श्चच्य लका दोना न दोना इतने मददत्व का न था कि नाभाजी फो उसे छिंसना छाव- श्यक होता पर निवासस्थान का उल्टेख करते हुए जाति का लिख देना दी विश्षेप स्वाभाविक है. । श्रन्य भक्तौ के विषयमे भी कहीं छन्यन उनके अच्छे कुल के ोने का वणेन नही किया गया दे यद्यपि बहुत से भक्त सुवशजात थे । श्रीचद्रद्दास-झमज- सुद के कट श्रय हो सकते हैं-- १, चद्रदास के बडे भाई के मित्र २, चद्रहास के प्रिय वड़े भाई ३ षवद्रदास जिसके प्रिय बडे भादैये श्रततिम दो से नददास तथा चद्रदास का माई माद होना स्पष्ट है, चदि उनमें से कोई भी बडा रषा हो 'और यही 'झर्थ लेना युक्तियुक्त दे। उस समय चद्रद्दास नाम का कोई ऐसा प्रसिद्ध व्यक्ति और उसपर नददासजी से बढकर प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं पाया जाता, जिसका उल्लेख कर नददासजी का परिचय दिया जा सके । राजनीतिक या सादित्यिक इतिहासों या भक्त शखला किसी मे तत्कालीन किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का यद्‌ नाम नहीं भिख्ता। स्वभावत किस विशिष्ट पुरुप से स्वध वतलाफर परिचय देने को प्रथा छ्रवश्य 2 पर चद्रद्दास के ऐसा पुरुप होने का कई्दीं छुछ पता नददीं दे इसलिए साई भाद का सवघ चतखाना ही ठीक ज्ञात दता है। श्यन्य साधनों से इसका कद्दतिक समर्थन दोता है, यद्द बाद को देखा जायगा 1 घरुवदासनो के वयाढीस अथ घसिद्ध हैं, जिनम पक भक्त- नामाबल्ली है । इनका रचनाकाल सोलदर्वी विक्रमीय शताब्दी का श्रतिम भाग है । इनकी तोन रचनाओं से रचना का समय दिया है, जो स० १६९३, स० १६८६ तथा स० १६९५ चि० है । भक्त.




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