पोथी प्रेमबनी भाग - iii | Pothi Prembani Bhag iii

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Pothi Prembani Bhag iii by शिवदयाल - Shivdayal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 । लि | मेरे लगी प्रेम की चोट विकल मन अति मेरे हिये मँ बजत वधा सेत सग पाया रे मँ गरु प्यारे के चरनौँं की दासी में तो आय पड़ी परदेस गेल कोइ घर की. -. मैं तो होली खेलन को ठाढ़ी न में पड़ी अपने गरु प्यारे की संरना में सतगरु पे डालेगो तन मन को बार मे हदं सखी पने प्यारे की प्यारी २०६ मोहि दृरस देव शुर प्यारे कयौ एती देरलगडइयौ ५९ ०० २६६ यह दैस सुभि नहि भावे यह्‌ सतसंग जौर राघास्वामी है नाम रागी जन माया के पाठे पड़े रात्त. गुरु मेदी ने मम से याँ कहा साघास्नामी चरनन अजो रे मना राघास्वामी छवि निरखत .मुसकानी - राघास््रामी छवि मेरे हिये चस गहं री राघास््रामी दराल सुनो मेरो विनती राधास्वामी दृत्ता दीनदयाल राघास्वामो दीनद्याला मोहिं दरशन दीजे राधास्त्रामी दीनद्याला मेरे सद किरपाला राधघास्वरामी सतगुरू पूरे में आया सरन हजूरे न~ ३९६ २५२ “ ४१ ३० १८४ ०१ र्‌ ९७ ०५ य्‌ ७१




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