सफल गृहस्थ | Safal Grihasth

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Safal Grihasth by खूबचंद्र सोधिया - Khoobchandra Sodhiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानसिक दान्ति भराम करनेके उपाय। ९ हो उरो एकवार अपन हृदयते यह पृष्ना चाहिए फ उतम मनुप्योकि ग्रति सहानुभूति ओर प्रेम हे या नहीं । जीवनक व्यापारोंको परिणामस अधिक महत्त्व देनकी आदत मानसिक झान्तिके छिए हानिकारक है । यह आदत सेकडे पीछे प्रायः नव्वे आद- मियॉपिं पाई जाती है । जता इस बातका भी तो विचार करो कि ऐसा करनेसे कौनसी हानि होती है । थोड़ी देरके ठिए उन मनुष्योंका देखो जो कि संसारमं खूब उठशे हुए हैं । जब कि उनकी सांसारिक कार्रवाइयाँ उनकी इच्छाके अनुकुल नहीं होतीं तब उन्हें कैसा तीव्र दुम्ख़ होता है। ऐसे मनुष्य जिस ओर देखते है उन्हें सांसारिक जड पदार्थ--रुपया, पैसा, पर्म्रिह, मान, अपमान--ही दिखाई देते हैं । प्रग-तृप्णाके समान वे बेचारे दिन रात उन्हींकि पीछे पढ़े रहते हैं । वे यही समझते है कि चिरकाठ तक उन्हें संसार हीमें रहना है, और इसी लिए वे सब साधनोंको अपनी इच्छानुकूठ घनाना चाहते है । ठीक वैसी ही चिन्ता, जेसी कि एकं ज्जआरीको सोति, जागते, उठते, बैठते टमी रहती ३, हमेशा उनके दृदयको जलाया करती है । सच पूछो तो उन्हें वह शांति भी पर्याप्त नहीं जो कि एक मजदूरको प्राप्त है । कितना अच्छा हों यदि ऐसे छोग प्रत्येक कार्यो शान्तिके साथ करें ओर उद्योगको अपना कर्तव्य समझें। यदि ये सग अपने अभिप्रायो सुधारनेके रए इतने चिन्तित हों तो इनका कल्याण होनेमं विम्ब न ठगे 1 संसारके नास्तिकवादीं इन्दं जोर जोरसे युकार कर सुनाते है कि यह दोड्-घूप सब व्यर्थ हे, जीपनफे दीपक चुझने तक ही सारा सेल हे । आस्तिक्वादी, जिन्हें कि परलोकका विश्वास है, चिट्लाते है कि भाइयों, वर्तमानके कारवारमें इतने मत उठझो, मरि- ध्यक अनन्त संप्री मी तो सुध ठिया करो । परन्तु ये ठोग अपने पंवेमे इतने व्यस्त रहते है कि इनके कानों पर जूँ तक नहीं रंगती । अपनी विचार-तरड्टॉमें ये इतने मस्त रहते हे--इसको वनाना, उसको विगाडना,




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