मँगनी के मियाँ | Mangani Ke Miyan
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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फमला-- तो क्या उसने तुम्हारे पत्र किसीको दिखलाये भी थे !
कुसुम--उ्यों ही मेरा कोई पत्र उसके पास पहुँचता था, स्यों ही
वह उसे ठेकर दोड़ी हुई मेरी मीसीके पास जाती थी | नस यही
कारण था कि मौसी समझती थीं कि हम लोग बहुत सुखसे रहते
हैं । हमारे यहाँ नीकर-चाकर, गाड़ियाँ और मोटरें आदि हैं । आज
वह रोग यौ आ रहे है | अव्र उन छोगोंकि सामने यहाँ कुक तो
होना चाहिए । पर क्या वतरा, अभी तक कम्बख्त रसोइया ही
नहीं आया ।
कमला--तो फिर रसोइयेका क्या इन्तजाम होगा ?
कुसुम--मैंने हिन्दू होटलवालोंसे एक रसोइया तो ठीक कर
छिया है । और मैनेजरने मुझसे कहा भी था कि वह ६ बजे तक
यहाँ पहुँच जायगा । पर सात वज रहे हैं और रसोइयेका अभी तक
कहीं पता नहीं हैं । ( कुछ ढइर्कर ) और देखो, आज अभी तक वह
भी दफ्तरसे नहीं आये । न जाने कहाँ चङे गये ! बहन, तुम यदीं
चैठी रहो, मैं जरा रसोईघरसे होती आउऊँ ।
[ एक ओरसे कुसुमका प्रत्थान । दूसरी ओरसे रमेराका प्रवेश । रमेश किसी
विचारे मम है, इसलिए कमलापर उसकी दुष्ट नहीं पड़ती । ]
कमला--आइए रमेशजी, नमस्ते । ॥
रमेश--( चौंककर ) कौन ! कमला १ ( चारों ओर चकित दोकर
देखता हुआ ) क्षमा करना । मैं कुछ और ही वित्चारमें इवबा था; इसलिए
भूलते तुम्हारे घर चला आया । ( रमेश लौटकर याहर जाना चाहता ६।
कमठा--( दैसकर ) नही नदी । आपने भूर नहीं को है । आप
अपने ही घरमे अये हैं । ॑ |
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