मँगनी के मियाँ | Mangani Ke Miyan

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Mangani Ke Miyan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ ब्‌ +न्‌ ऋ , = कम) > ज्‌ अ न.) ज = भ ९ नया, ना रन फमला-- तो क्या उसने तुम्हारे पत्र किसीको दिखलाये भी थे ! कुसुम--उ्यों ही मेरा कोई पत्र उसके पास पहुँचता था, स्यों ही वह उसे ठेकर दोड़ी हुई मेरी मीसीके पास जाती थी | नस यही कारण था कि मौसी समझती थीं कि हम लोग बहुत सुखसे रहते हैं । हमारे यहाँ नीकर-चाकर, गाड़ियाँ और मोटरें आदि हैं । आज वह रोग यौ आ रहे है | अव्र उन छोगोंकि सामने यहाँ कुक तो होना चाहिए । पर क्या वतरा, अभी तक कम्बख्त रसोइया ही नहीं आया । कमला--तो फिर रसोइयेका क्या इन्तजाम होगा ? कुसुम--मैंने हिन्दू होटलवालोंसे एक रसोइया तो ठीक कर छिया है । और मैनेजरने मुझसे कहा भी था कि वह ६ बजे तक यहाँ पहुँच जायगा । पर सात वज रहे हैं और रसोइयेका अभी तक कहीं पता नहीं हैं । ( कुछ ढइर्कर ) और देखो, आज अभी तक वह भी दफ्तरसे नहीं आये । न जाने कहाँ चङे गये ! बहन, तुम यदीं चैठी रहो, मैं जरा रसोईघरसे होती आउऊँ । [ एक ओरसे कुसुमका प्रत्थान । दूसरी ओरसे रमेराका प्रवेश । रमेश किसी विचारे मम है, इसलिए कमलापर उसकी दुष्ट नहीं पड़ती । ] कमला--आइए रमेशजी, नमस्ते । ॥ रमेश--( चौंककर ) कौन ! कमला १ ( चारों ओर चकित दोकर देखता हुआ ) क्षमा करना । मैं कुछ और ही वित्चारमें इवबा था; इसलिए भूलते तुम्हारे घर चला आया । ( रमेश लौटकर याहर जाना चाहता ६। कमठा--( दैसकर ) नही नदी । आपने भूर नहीं को है । आप अपने ही घरमे अये हैं । ॑ | १९ ६९ क




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