चाणक्य नीति दर्पण | Chanakya Neeti Darpan

Chanakya Neeti Darpan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` ॐ तृतीयोऽध्यायः # , १७ कोकिलानां स्वरो श्प नारी रूपं प- ` तित्रतस्‌। विद्या सूपं रूपाणां क्षमा ` स्प तपास्वनाय्‌ ॥ € ॥ ठीका--कोकिर्लोकी शोमा स्वर है। ख़ियों की शोभा पतिंत्रत । कुरूपोंकी शॉमा विय्याहै।तपस्वियेंकी शो भाक्तमाहे॥ ६. ॥! त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्पार्थ त्यजेत 1 ग्रामं जनपद्स्या् ग्रासाथं एरथिवीं यनेत्‌ ॥१०॥ टीका--लं के निमित्त एक को छोडदेना चाहिये। भ्राम के हत॒ छंल का त्याग करना उचित है। देश के दर्थ घ्ामका शौर अपनेश्चथं पृथिवी का अथौत्‌ सं .का त्यागही उचितहै ॥ ९०॥ ६ = उमे नास्ति दारिव जपतो नास्त पातकम्‌ । मौनेन कलशे नास्त नास्ति -जामस्ति मय्य्‌ + ११ ॥ + टीका--उपाय करने पर ददिता नहीं रहती ! जपने ' वालेको पाप नहीं रहता।पौन होनेसे कलह नही होता! , जागनेवाले के निकट भय नहीं आता ॥ १९॥




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