पावन - प्रवाह | Pavan - Pravah
श्रेणी : धार्मिक / Religious, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 ११,
इधर-उधर व्यथं भटकना छोडकर साथेक नास चाल्ञ इम
ज्ञान रूपी सूय॑ को धीरे-धीरे जैसे बने वैसे प्राप्त करना चाहिए
क्याकि यदह ज्ञान-सुय॑ पाप-विनाशक और अज्ञेय सामश्य
वाला है । | ं
यो ज्ञानसंचयमपास्य जनिं स्वकीयां, -
व्यथं हि यापयति, तस्य न म॑गलानि।
प्रादुर्भवन्ति विभवाः न च संपदोऽपि,
काशचियतस्ततं उपास्यमिदं स्वसारः ॥&॥
जो मनुष्य जान को उपाजेन न करर अपन जीवन् का व्यथं
गवाना हं । उसके कभी अच्छे दिन नहीं आते - उस कोड् वभव
ओर सम्पत्ति नहीं मिलती । सार यह है कि जान के विना किमी
भी उत्तम वस्तु की प्राप्ति नहीं होती । इस लिये अपने जीवन की
सार-भूत इस दिव्य ज्योति को प्राप्त करन के लिए निगन्तर् प्रयत्न
करना चाहिए । |
बिपत्ति-पद्धिः श्रलयं प्रयाति,
यत्र स्थिते शीतल्तवारिणीव ।' `
उदेति सद्धाम्ब-तर्मंदिष्ठः,' ˆ ` ˆ `
स॒ ज्ञानपाथोधिरूपासनीयः ॥१०॥
` जिस प्रकार जल के पास श्रग्नि नहीं रह 'सकती उसी
प्रकार विवेक-ज्योति ॐ उदित हो जाने पर विपत्तियों का रहना
५
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