जतन प्रकाश | Jatan Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाश [_ ११ बड़ी नादानी की बात है। याद्‌ रखना चाहिये कि महज सतसंग में आबैठने से सतसंग का फल म्राप्र नहीं हो सक्ता। फल की प्राप्री के लिये सतसंग को कारंवाइ करनी ला- जिमी है। सतसंग की कारंवाइं और अभ्यास में ज्याद फक नहीं है। सतसंग में दष्टी जोड़ कर बैठना और पाठ को जिसमें राधघास्वामी दयाल व राधाखामी नाम की महिमा आओौर स्थानों का लिक्र जौर चढ़ाइं की कैफियत का बनंन है गौर के साथ सुनना और अन्तर में साथ साथ चढ़ाइे महसूस करना और जब जब फ़मांबें सन्त सतगुरू के बचनों को सुनना (जोकि हृदय के स्थान पर उसी महा बिशेष चेतन धार के कारकुन होने का नतीजा है जिसके साथ अभ्यास के वक्त अन्तर में मेल किया जाता है) ध्यान सुमिरन ओर भजन ही की तो कावा है। पिर जो शख्स वाकडं अक्छूसर सतसंग में यह का रंवाइं करते हैं और वाकई सतसंग का रस व आनन्द हासिल करते हैं कैसे ममकिन || हो सक्ता है फि खतसंग से अल्हदा होकर अन्तर में इस रस व आनन्द को लेने की ख्वाहिश न रक्खें ओर इस ख्वाहिश के पूरा करने की गरज से रोजमरों उमंग के साथ घंटा आघ घंटा अभ्यास न करें। या जो कैफियत उनको सतसंग के वक्त प्राप्त हुई उसका असर दिल पर रह कर अलहदगी के वच्छ जब तब उनके ध्यान में सन्त सतगुरू की मोहिनी छबि और उनके अन्तर में राघास्वामी नाम न जाजावें। अगर रेखा नहीं होता है तो जाहिर है कि




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