रोटी का सवाल | Roti Ka Sawal

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Roti Ka Sawal by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा धन य ड्ै।. आज वे बढ़िया तरकारियों ओौर स्वादिष्ट फर्लोसे र्दे रहते है । धृथ्वी-तरुपरं हजारो सडको ओौर रेर्वे-खादर्नोका जारु-सा विछ शया है, भौर पतक आरपार सुरे वन गयी है । आल्प, काफ ओौर हिमाख्य पवते की निजेन धारि एल्िनक्ा 'चीत्कार सुनाई पढ़ने लगा है । नदियोंमिं जहाज 'चकरने करे हैं । समुद्रतर्दोकी भली-भाँ ति पैसाइड होकर वे सुगम बना छिये गये हैं । बद्ाँ खोद-खांदकर कृत्रिम बन्द्रगाह घना लिये गये हैं, जहाँ जहाज़ोंकों आश्रय मिलता है भर समुद्रका कोप- सूफान भी उनका कुछ विगाद नहीं सकता । चट्टानोंसें गहरी खानें न्वीद छी गयी हैं और भूगभंमें चक्करदार गैलरियाँ निर्माण कर खी गयी हैं नहाँसे कोयला आदि खनिल पदार्थ निकाछे जा. सकें । राजमारगोंकि मिलन-स्थलॉपर बढ़े-वड़े बाहर बस गये है, जिनके अन्दर उद्योग, विज्ञान सौर कठाकी सब निधियाँ एकत्र कर ली गयी हैं । हसको इस सदीमें जों विशाल वैभव उत्तराधिकारमें सिला है वह उन छोगॉंका संचित किया हुआ है जो पौदियोतक दुम्खमें ही जिये सौर मरे, अपने स्वामियोकि अत्याचार और दुव्य॑वहार सहन करते रहे ओरं अत मे धोर परिश्रमसे ही जलंर होकर चल घते । सहखों वर्षोतक करोड़ों आदमियोंने जंगॉको साफ करने, दर- दरलोंको सुखाने तेथा जरू और स्थरू-माग बनानेके लिए घोर परिश्रम किया है । जिस धरतीपर हम आज खेती करते हैं उसके कण-कणकों मानव जातिकी कई नसलोंने अपने पसीनेसे सींचा है । दर-एक एकद चर वेगार, जानमार मेहनत भौर जन-साधारणके कर्टोंकी कहानी लिखी हुई है। रेल-मागंके प्रत्येक सीकूपर, टनल ( पहाढ़ी सुरंग ) के श्रत्येक गज्ञपर मानव-रधिरकी वकि चदु है 1 खार्नकी ठीवारोपर भाज भी शखोदनेवार्छोकी कटारौके चिन्द बाकी है! वके खम्भोके बीच जो स्थान है वहाँ न जाने कितने मज- टगोकी कर्वे बनी हैं । और यह कौन कह सकता है कि ऐसी इरएक कव्रपर मखु, उपवास मौर भकथनीय हुदुंशाकी कितनी लागत लगी है । ऐसे कितने अभागे परिवार होगे जिनका आधार एक मज़दूरकी थोड़ी-सी




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