श्री तुलसी संग्रह | Shri Tulsi Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दिही के दुगं पर चह णये श्रौर उपद्रव करने लगे ! किले के
कंगूरे तोड़ वे महल सें घुस गये । सारा नगर वन्द्रों के श्त्याचारों
एवं उपद्रवों से जस्त हो यया । तव ते अकबर बहुत घवबराया।
उसको घवराया इध्मा देख, उसके कतिपय शुभचिन्तकों ने उसे
समसा कर कहा कि. झापने जिनके चेद् किया है उनके इतुमान
जी देव ह । यदि श्राप उन्हें छोड न देंगे, तो ये बन्दर कोई बड़ा
उपद्रव खडा कर दंगे ! इस लिये श्राप उन साधु को श्रमी कड
दे । अकवर ने ऐसा ही किया और गोसाई' जी से हाथ जोड़
श्रपना श्रपराव क्षमा कराया । सरल श्ौर उदार हृदय तुलसीदास
ने उसका अपराध क्षमा कर दिया श्रौर कहा तृ श्रीरामचन्द्र जी
कों देखना चाहता था से उन्होने पहले श्रपनो सेना भेजो है । वे
स्वयं भी श्माते ही होगे तू देख लेना । ” यह खुन श्रकवर बहुत
ललित इच्या श्योर ्ननेक बहुमूल्य वस्तुपं गेसाई जी के भेट की ।
उस भट को श्रस्वोकार कर तुलसीदास ने उससे काश्व
इस नगर मे श्रीरघुनाथ जी का भंडा गङ् भया! तू श्रव कही
छान्यत्न नया स्थान लना क्र रह । ” कहते है, श्रकवर ने पुरानी
दिल्ली कोड णादजौनावाद् नाम का नया नगर बसाया श्रौर षहँ
जाकर हं रहने लग्ग ।
दिल्ली से लौटते हुए तुलसीदास दुन्दावन गये । कद्दा जाता है,
उस समय चृन्दाचन में सद्दात्पो नाधादास जी विद्यमान थे । तुलसी
दास जी उनसे मिले । नाभादास जी ने उनका वड़ा भाद्र सत्कार
किया घौर उनको प्रणंसा करते हुए एक छप्पय बना डाला । षह
छप्पय यह है :-
५ श्रेता कान्य निवंघ क्री सत काटि रमायन ।
इक शच्छर उद्धरे बद्य-हत्यादि-पराथन ॥
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