आदर्श कविता कुञ्ज रहस्य | Aadarsh Kavita Kunj Rahasya

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Aadarsh Kavita Kunj Rahasya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १४ दूस द्ारे का--दस इन्द्रिय रूपी-दसद्वारों वाले, शरीर के पिंजरे में, प्राण रूपी वा का पदी र रहा ३ । दस लिए, इस के रहने में ही श्ारचयं है; निकल जाने में श्राःचय फी बात हो कया ? शावत गारी--गाली श्राते हुए तो एक दोदी है, किन्स॒ यदि उसे उल हैं, अरात्‌ गाली निकालने पाले को इस भी गाली दे दें, तो बह प्ररेकं हो जाती है इसलिए कबीर कहते हैं कि उस शःली छो मत उलो. ताकि एक की एक ही रह जाय । उद्रसमाता--जो न्यक्ति अपने शरीर-च्वोदद सात्र के खिए भ्रन्न लेता दै श्र चन दकने मात्र के लिए कपड़ा पटना है, उससे अधिक छ मी एकत्रित नहीं करता, चास्तव सें घही सच्चा साथु हे। . पृष्ठ १४ जहां काम--जो व्यक्ति काम करते हैं, वे नाम नहीं चाहते शरीर जो नाम के भूखे हैं, उनसे कुछ काम नहीं हो सकता | भूथवा, जहां काम वासनाएं हैं चहाँ प्रभु का नाम नहीं श्राता श्रौीर जो प्सु के माम में लीन हैं, काम- घासनायें उनके पास नहीं फरकतीं । सूर्य घर रात्रि की भांति ये दोनों वस्तुएं कभी एक साथ नहीं रहीं, न रद सकतीं । काम काम-- काम कास सभी इुकारते हैं, घारतव में काम वथा है, इसे कोई नहीं पहचानता । मन की प्रत्वेक कल्पना सात्र ही का नाम काम है । आबगई- मजुष्य उ्योंही किसी से मांगता है कि उसके साथ दी प्रभाव, सम्माव श्रीर परेम नष्ट हा जति है ( शतः कमो कुछ न मांगना चाहिये ) । प्रसुत्ता को--सभी कोई प्रभुता या झधिकारों को श्राप्त करना चाहते हैं, किस्तु उस प्रभु की उपासना कोई नददीं करता । कबीर कहते हैं कि यदि प्रभु कौ उपासना करने दग पदे' ठो प्रवा उसकी झपने झापडी दासी दो जायगी । चितं कपटी- कपरी हदय वाले पुरुष कठोर, और कुदिल हृदय को लिये हुए उपर से वदे भ म ये मिलते दै ! दु श्ौर द॑ दोनों सामने शौर पीके से सिन्नर दो रूपों घाले होते हैं । कबिरा जोगी-+ कबीर कहते हैं कि थदि योगी (साधु) पुरुष संसार के शोगों से किसी प्रकार की श्राणा न रहे; तो व स्सार का शुरु और संसार




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