शेष प्रश्न | Shesh Prashn
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)¦ हेष परश्च १७
मनोरमने मयके साथ उधर यह फेरकर देखा, शिवनाथ टेविलके पास
खड़ा हुआ कोई क्रिताव दढ रहा है 1 नौकरने उसे गलत खबर दी थी ।
मनोरमा मारे शरमके मानों ज़मीनमें धैंसने ठगी | शिवनाथके पा आकर्
खड़े होनेपर वह ऊपर मुँह उठाकर देख न सकी ¦ शिवनाथने कद्दा, ” किताव
सुझे मिली नहीं आशु वावू । तो अब चला | ”
आशु बावूसे और कुछ कहा नहीं गया, सिर्फ कहा, “ वाहर मेह जो
चरस रदा है । »
श्चिवनाथने कदा, “ वरखने दीजिए । व्यादा नहीं है |
इतना कहकर वद्द जा दी रहा था कि अकर्मात् ठिठक कर खड़ा हो
गया । मनोरमाको लक्षय करके वोला, ¢ मैंने दैवात् जो सुन लिया दै वह मेरा
दुर्माग्य भी है और सौभाग्य भी । इसके छिए आप लजित न हों । ऐसी बातें
अकसर सुननी पढ़ती हैं | फिर भी, यह मैं निश्चित जानता हूँ कि वर्ति मेरे
सम्बन्धे कदी जानेपर भी मुझे सुनाकर नहीं कह्दी गई । इतनी निर्दय आप
इरगिज नहीं ह | *” र
फिर जरा ठहरकर का, “ मगर मेरी ओर एक शिकायत है । उस
दिन अक्षय बाबू वगैरह प्रोफेसरोंके गुटने मेरे विरुद्ध इशारा किया था कि
मानो मैं किसी खास मतलवको लेकर इस घरसे घनिष्ता बढानेकी कोशिश
कर रदा हूं । पर एक तो सब लोगोंकी औचित्यकी धारणा एकक-सी नहीं द्ोवी,--
दूसरे वाहरसे कोई एक घटना जैसी दिखाई देती है वदद उसका पूर्ण रूप नहीं
होता । पर वात जो मी हो, आप लोगोंमें प्रवेग करनेकी कोई गूढ दुरभिषन्वि
उस दिन मी मेरे अन्दर नहीं थीं और आज मी नहीं हे। ” फिर सदसा
आघ बावूको छश्ष्य करके कहा, “ मेरा गाना सुनना आपको अच्छा लगता
है,--घर मेरा ज्यादा दूर नहीं है, अगर किसी दिन सुननेकी तवीयत दो
जाय, तो वहीं चरण-रज दीजिए.गा, मुझे खुशी ही होगी ।” इतना कटकर
फिरसे नमस्कार करके शिवनाथ वाहर चला गया । पिता या कन्या दोनॉमेंसे
कोई एक भी चातका जवाब न दे सका ! आयु बावूके ढृदयमेंसे वहुत-सी
वातं एक साथ निकलनेको घक्छमधक्ा करने लगीं; किन्तु निकल न सकीं 1
वाहर तव वर्पा जोरकी दो रदी थी; यद्द॒ वात मी उनके मुँहसे न निकढी कि
दिवनाथ वाबू , जरा ठददरकर जाइएगगा 1
नौकर चायका सामान लेकर हाजिर हुआ । मनोरमाने पूछा, “ तुम्दारी
चाय क्या यहीं वना दूँ वापूजी १ ”
User Reviews
No Reviews | Add Yours...