फांसी | Fansi

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1407 Fansi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। ९ परस एक दिन रेवतीशङ्कर सन्थ्या के पश्चात्‌ जब उुन्द्रवाई के यहाँ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि खुन्द्रबाई कामताश्नसाद द घटने पर सिर रकखे लेटी है और कामताप्रल्ाद्‌ डस के सिर पर हाथ फेर रहे हैं। यहद देखते ही छुछ छाणों को लिए रेवदीशङ्कर की आलो के नीचे धेया छा गया 1 इधर उन्हे देखते ही कामताप्रलाद्‌ ने शीश्रतापूंक उसका सिर श्रपने घटने पर से हटा विया श्रौर रेवती शङ्कर की ओर देखकर कछ पते हप से दोले--दनके सिरः भै बड़े ज़ोर का दंदं था, अतएव इन्होने सुभे बुलवाया 1 मैने द्वा लगाई है, अव कच क्म है । रेवतीशङ्कर कामताप्रक्ाद्‌ को लिटपिटाते देख दी चुके थे; ्तण्व उन्होंने सपभका कि कामताप्रलाद फोवल बात बना रहे है । उन्होने एक शुष्क सुरकान के साथ कहा-- आपके हाथ गे श्रोर ददं कम न दो--यह तो एक अन- होनी तात है । यह्‌ क कर रेवतीशङ्कर ने खम्द्रबाई पर प्क तीन्र दशि डाली । छुन्द्रवाई उक्त ष्टि को खन न कर सदी, उसने अपनी आँखें नीची कर लीं । कामताप्रसादं खड़े होकर खन्दरबाई से बोले-तो अब म जाता हृ तुम थोड़ी देर वाद द्वा प्क बार और: लगा लेना 1 “'वैठिए-वैठिए, आपकी उपल्थिति दर्द को दूर करने द




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