वाल्मिकी अपने काव्यमें आत्म प्रकाश | Valmiki Apne Kavyame Atma Prakash

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Valmiki Apne Kavyame Atma Prakash by कुमार गंगानन्द सिंह - Kumar Ganganand Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐतिहासिक विचार १९१ रामायणकी रामकथा इन दोनॉमेंसे किसी भी विशागमें नहीं रक्खी जा लकती हे; क्योंकि यह निय्वठम्ब खड़ी रदकर सर्वत्र एक ही प्रधान चिप, या जैसा कि दम कहते हैं, शिक्षाके लिये है, जोकि इसके सम्बदन फरनेवाठी कददानीका डुः्खान्त होना सूचित करती है | भ्रास्ताविक ख्मेमे रेखा उद्छिखित है कि ऽख श्छोकमिं ही जिसे घाल्मीकिने यशनस्मात्‌ मर्माहत होकर उच्चारण किया धा, चद शिक्षा है और पीछे उली श्ठोककी शिक्षाके माधारपर वे प्रचलित रामकथाकी लेकर डसीको महाकाव्यमें परिणत करने वहे । इख वारम्बार उद्धूत,किये जावेवाछे इठोक # का सवाद्‌ इस प्रकार है :-- कमी नहीं यशा पा निषाद्‌ तू यद्यपि बोते काठ अनन्त | काम -सुरध इस कौब्च-युरालमें किया एकका जीवन भन्त ।” वास्मीश्चिकी इख भविष्यत्‌ वाणीको छोग पीढेकी बनावट क्‌ सकते दै; क्योकि यह ॒कपट-निदेशित ( शेपक ) समद जानिवाछे पक भ्रास्ताविक सर्गमें पायी जाती है। परम्त॒॒जेसा & मा निपाद प्रतिष्टान्त्वमगसः शाश्वतीः समा? यत्‌ क्रोचमिधुनादेकमदधीः काममोदितस्‌ ॥ भिय साहब ते य लिखते हैं -- „ ग्ण निट 06 पर, 97 9416585 ८ ७९८३०5९, 0256 छपरा ८850, 0 प तण णह चणय एवते 25 चपि ठ भेष 06 ज 5 इप्‌ एक डा बकरी




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