धरनीदसजी का जीवन चरित्र | Dharnedasji Ka jeevan Charitra Sahit

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Dharnedasji Ka jeevan Charitra Sahit by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चिताबनो गये लीला. थ कबहूँ जाल जंजाल मच्छी घस्पानै । कबहु जन चेराते अगिन से जराव 1८) से तोपे गढ़ावे गढ़ी के ढहाबे । कबहूँ बंद बेसी मवेसी ले आवे ॥९९॥ बड़े चाक चाखूठ इंटा पकाने । जड पाथर नकूसगीरी करावे परग घरा धौरहूर घवल ऊंचे उठावे । तह जोरि जाऊ विखौना विदा ४२९१ तहाँ फूल फैले लगे तूल तकिया । दूरीची बरीची उडै स्टॉक किया ॥२२॥ सिपाही घनेरे खड़े सीख नाव । 'किते सिच्छुका झँठ साभा जुनाव ॥२३॥ रिन साल मेढ़ा व इस्ती लड़ावे । नह नागदी नासि नाटिन नचान परद्श खरी छे बजाने स्स जिय न. आव । ` हरै घन बिराना घसारप्ं ठाद ॥२॥ : कतेका भले जीव सूली चढ़ाते । महा मस्त ह मुड-माला चेंघाले 0२६0 जो हरि फी मगति जीव-दाया दिढ़ाले । करै ता की लिंदा नगीचा न आनं ५२७ बिलाका परास सनहि सनं विचारा) जगत जेर मास जिवन धर हमारा प२८॥ ` *प्हुलवान 1 †पतुरिथप । [घाँघसी 4 ४




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