नारीधर्म विचार | Naridharm Vichar Volume - Ii

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Naridharm Vichar Volume - Ii by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-नार्सधमे विचार { १५] , द्वितीय. भोग अनेक स्थानौ म विस्तारपूर्वक वरन किया गया है । श्राप भी श्रपनी पूर्व माताश्री के जीवनचरित्रों को स्मरण करती हुई लिनमें से किन्हीं २ का चरित्र प्रथमभाग में लिखा है श्नौर किन्दीं का इसमें भी लिखा जावेगा) श्रपने नित्य- नेमित्तिक कमों को यथाविधि वेदाज्ञाुसार करना प्रारम्भ कर दो तुम्हारे नित्यनेमित्तिक कर्मों के सुधरन से न्याय- कारी परमात्मा श्रपनी न्यायव्यवस्था से तुम को झवश्व सच्चा सुख देंगे, जिसको पाकर तुम संसार को सुखधाम यना सकोगी ! यदि इस समय श्ाप इत पुस्तक को पढ़कर रेसा विचार करें कि दम परतंत्र और निवेल होरही हैं, हम किस प्रकार पूर्व माताश्रों की भांति श्रपने नित्यंनमित्तिक कर्मों को कर सकें. हम पुरुषों के वन्धन में हैं, जिसके कारण श्रापकें लेखाजुसार कर्म करना श्रति कठिन है। इस विपय में में निवेदन करूंगा कि यह श्ापका विचार टीकर नी । लिखने कमे करे के लिये नाना प्रकार को विचित्र रचनायुक्क मद्य शरीर ब्ापको दिया हे आप उसकी विश्वासिनी बनिये । श्राप तो परमात्मा जगत्‌-रचयिता के भी श्रथन नदी रदी, यद्वि होतीं तो उसकी आशा का उठलंघन न करतीं आप परतन्त्र हो हमको श्रौर आपको सबको उसके नियमों: खुलाइटो के नियमें के पालन में रहना चाहिये, तभी खुघार होसक्रेगा । यदि श्राप स्वतन्त्र न हे जातीं तो कदापि नित्यनमित्तिक कर्मों को त्याग न बैठतीं । उससे कोई वलवान्‌ नदी उससे - सायं प्रातः उस की श्क्षा पालती हुई याचना करा चंड तुमको.कमे करन के लिये बल देगा ' वस, श्रव यह विचारं कर उसको ्नःपालन मै लगजाश्रो, तव ही श्रापको खुख मिल सकता




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