लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा | Laxminath Bejabaruva

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Laxminath Bejabaruva by हेम बरुवा - Hem Baruva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निबन्धकार के रूप में जिस प्रकार साहित्यिक अचुशीलन श्रौर साहित्य-समीक्षा प्रादि निवन्ध कौ ग्न्य विधाए पाइचात्य प्रभाव की सन्तान हैँ उसी प्रकार व्यक्तिपरक निबन्ध भी । सजंनरील लेखक के रूप में बेजबरुवा का सर्वोत्तम श्रवदान व्यक्तिपरक निबन्ध की विधामेहीहै। उनकी लेखन-दौली व्यक्तिगत थी । एसी दोली कभी-कभी ग्रत्प- प्रतिम हाथों मे निरी जोड़बन्दी करने लग जाती दै । किन्तु बेजबरुवा के व्यक्तिपरक निबन्घ सांसारिक नीति-ज्ञान के अ्रनमोल हीरे हैं जिनकी भाषा श्रनिवायंतः हास्य भ्रौर उपदेश की सृष्टि करती है । बगंसाँ के अनुसार “समस्त हास्य श्रपने-न्रापमें सामाजिक होता है ।' किन्तु बेजबरुवा के लिए हास्य व्यक्तिगत भी हो जाता था । इस वर्ग के निबन्ध, वास्तविक अ्रथे में मत की ग्रनिबद्ध उड़ानें' अपनी प्रकृति से ही श्रवान्तर कथन का रूप ले उठते हैं, क्यों कि उनका दृष्टिक्रम, जसा कि रौबटें लिण्ड ने संकेत किया है, “कल्पनातीत रूप से व्यापक हो सकता है।” कभी वह प्रवचन के निकट पहुँच जाता है तो कभी कहानी के । वह श्रात्म-कथा का एक खण्ड भी हो सकता है, श्रौर निरथेक दब्द-जाल भी । वह व्यंग्य-प्रधान भी हो सकता है, . ग्रपकथनमभीहो सकताहै प्रौर श्रतिभावुकमी हो सकता है। उसका विषय प्रलय के दिन से लगाकर कंँची तक कुछ भी हो सकता है ।' हाइने ने एक बार कहा था कि जीवन श्रपने तल में इतना गहन-गंभीर होता है कि यदि उसमें विनोद का मिश्रण न हो तो वह श्रसह्य हो जाय । बेजबरुवा क्यों हँसते थे ? क्योकि वे हंसने की स्थिति में थे । वे इसलिए नहीं हँसते थे कि हाइने ने जीवन की 'गहन-गभीरता' के बारे में जो कुछ कहा है उसे वे मानते थे, वरन्‌ इसलिए कि बेजबरुवा का जीवन इस प्रकार का था कि उन्होंने दोशव से श्रन्त तक कभी जाना ही नहीं कि दुर्भाग्य प्रथवा दुरवस्था कया होती है ।. १६१४-१५ के युद्ध के पदचात्‌ भ्रंग्रही साहित्य मे लेखको के एक विपुल वर्ग का प्रादुर्भाव हुम्रा, जिन्हें 'विडम्बनावादी ' कहते थे । जिस श्रर्थ में हमारे सम- कालीन ये श्रंग्रेज़ी लेखक 'विडम्बनावादी' थे, उस प्रथं मे बेजबरवा विडम्बना. वादी' न थे । उनकी रचनाश्रों में जो विडम्बना है वह पूर्ववर्ती मंग्रेजी लेखकों के प्रकार की है । बेजबरुवा के गुण रद्ध -श्रालोक में नहीं हैं, वे ्रात्म-प्रकट ग्रौर




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