मराठी का भक्ति साहित्य | Marathi Ka Bhakti Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रो० भी० गो० देशपांडे - Pro. Bhee. Go. Deshpande
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
सतो ने देशभाषा ( मराठी ) में आध्यात्मिक ज्ञान एव भक्ति का रसं विवेचन किया ती
पढित कवियों ने कठापूर्ण मद्दाकारव्यों की सषि कर लोकरजन के साथ टी साथ मक्ति
कामी व्यापक प्रचार किया । मराठी पंडित कविर्यो के प्रबन्धकार्न्यो के भाख्यान प्रायः
रामायण, मद्दाभारत और मागवत से लिये गये थे जत भी विष्णु के लोकमगल-
कारी अवतारो के यशोगान से-उनकी कृतियाँ ओतप्रोत हैं । सतों के काव्यों में शात और
भक्तिरस मात्र का ही निवादद है किन्दु इन कलाकवियों ने सक्तिरस को प्रमुख पद पर
आसीन रखते हए शगार, वीर, करण, हास्य शत्याद्रि रसो की भी सफल निष्पत्ति करके
मराठी कान्य की रसमयता अत्यधिक बढायी । सक्षेप में इन कवियों की कलाछृतियों में
भक्ति की धारा ही स्पष्टतासे दिखायी देती है अतः भक्ति-साष्टित्य मेँ उनकी गणना
करना किमपि मनुचित नदीं है
८३) प्राचीन मराठी सादित्य मेँ पदो की सरस ओर नादमधुर रचना करनेवारलों
फा एक दछोटा-सा मर दै जिसमे संत एकनाथ, दासोपत, मध्वसुनि, भगृतराय,
शिवदौन केसरी, देवनाथ भौर दयालनाथ इत्यादि कवियों का समावेश होता है। इन्होंने
नये नये छदो मेँ माकष॑क, चमक्ृतियुक्त शब्दरचना से अटंकृत जीर अतीव रसमीने
पर्दो की सफल रचनाएँ कीं जो जन-साधारण में अतिप्रिय हुई। इन पदों के विषय
दुरियश, भक्ति और नीत्युपदेश दी हैं । दनक प्रमुख रस भक्ति ष्टी है अत इस काव्य-
प्रकार का भी अन्तभांव भक्ति-साहित्य में करना उचित है ।
(४) प्राचीन मराठी सादित्य में चरित्र भ्न्यों की सफल रचना मिलती है। ये
चरित्र-अथ गद्य और पथ दोनों रूपों में मिलते हैं । इनका विस्तृत विवेचन आगे दिया
गया है । चरित्नों के नायक प्राय देव, पथ सस्थापक, सद्रुरु जीर सत है । सतः इनमें भी
दरियश भीर सक्ति की धारा प्रवलता से बदती है। इसलिए इनका भी समावेश भक्ति+
साहित्य मे दता है ।
(५ ) मठारदर्वीं श्चतान्दी के अत में दक्षिण भारत की तनोवर नगरी में मद्दाराज
शिवाजी के वशुज राजाओं ने लगभग तीस पेँतीस पौराणिक नाटकों की रचना कराकर
उनको अपने दरवार मेँ रगमंच पर सफलता से अमिनीत कराया था । इससे
रुपष्ट दोता है कि मराठी का रगमच १८० वर्षी से पूर्व प्रारभ हुआ । नाटकों के कथानक
पुराणों से लिये गये थे जिससे सिद्ध दोता है कि उक्त इश्यकारव्यों द्वारा लोकरजन के साथ
सक्ति ओर नीति का सदुपदेश देना भी उनका उद्देश्य था सत इसकी भी गणना
मक्ति-्ारित्य में करना तक के विरद नटी ६ै 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...